इस बात ने किया सोचने पर मजबूर
वर्ष 2009-10 में दिल्ली में आयोजित सम्मेलन में एक्सपर्ट ने लिवर ट्रांसप्लांट को लेकर चुनौती पर बात रखी। इसमें बताया गया कि कई लोगों की मौत सिर्फ इसलिए हो रही है कि ट्रांसप्लांट सर्जन की बहुत कमी है। कई बार डोनर मिल जाते हैं, पैसे भी होते हैं लेकिन डॉक्टर नहीं होने के कारण मरीज को बचाना मुश्किल होता है। डॉक्टर्स की कमी के चलते ट्रांसप्लांट महंगा भी होता जा रहा है। इस बात ने स्पप्निल के सोचने का नजरिया ही बदल दिया और उन्होंने ट्रांसप्लांट सर्जन बनने की ठानी। चूंकि उस वक्त इंडिया के गिने-चुने सेंटर में ही ट्रांसप्लांट होते थे। इसकी लर्निंग जरूरी थी अगर लोग सीखेंगे नहीं तो यह फील्ड आगे कैसे बढ़ेगी।
देश-विदेश के कॉन्फ्रेंस किए अटेंड, नामी अस्पतलों में दी सेवाएं
डॉ शर्मा ने मेडिकल कॉलेज रायपुर से एमएस करने के बाद सुपरस्पेशियलिटी डीएनबी जीआई के लिए मुंबई गए। 2 साल दिल्ली के एम्स और पंत हॉस्पिटल में भी जॉब किया। इसके बाद लिवर ट्रांसप्लांट में फेलोशिप की। मुंबई में ही बतौर लिवर ट्रांस्पलांट सर्जन का कॅरियर शुरू किया। अपोलो और कोकिलाबेन हॉस्पिटल में सेवाएं देने के बाद अभी वहीं फोर्टिस हॉस्पिटल में हैं। स्वप्निल के पिता आरपी शर्मा पीडब्ल्यूडी में एसडीओ रहे हैं और मॉम सरला शर्मा हाउसवाइफ।
पीयूष का ऑपरेशन 13 घंटे चला, 24 घंटे में ऑनलाइन फंडिंग
शर्मा ने बताया कि रायपुर के छह महीने के पीयूष का ऑपरेशन काफी जटिल था। हमें ऑपरेशन में 13 घंटे लगे लेकिन इससे पहले बच्चे को ऑपरेशन के लायक तैयार करने में हमें एक महीने लगे। इस बीच पीयूष के चेस्ट में इन्फेक्शन हो गया था। 15 लाख रुपए ट्रांसप्लांट का खर्च था जिसे पीयूष की मौसी पूजा सरकार ने एक कंपनी के सहयोग से 24 घंटे में ही ऑनलाइन इक_े कर लिए। पीयूष की नानी लक्ष्मी सरकार ने लिवर डोनेट किया। यह ट्रांसप्लांट सिर्फ भारत ही नहीं बल्कि वल्र्ड के बेस्ट पीडियाट्रिक सेंटर लंदन के लिए भी बड़ी चीज है।