बड़ी बात यह है कि अमानक दवाएं कई बार जब्त किए गए हैं, जिसे पुलिस ने ही पकड़ा है। औषधि नियंत्रकों को इसकी भनक तक नहीं रहती। ऐसे में जो अधिकारी खुद का काम नहीं कर पा रहे हैं, उन्हें अतिरिक्त जिम्मेदारी दे दी गई है। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय की अधिसूचना में स्पष्ट है कि एसडीएम या डिप्टी कलेक्टर रैंक के अधिकारी को ही अभिहित अधिकारी की अतिरिक्त जिम्मेदारी दी जा सकती है।
नहीं कर पा रहे नियमित नियुक्ति केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय की 13 दिसंबर 2017 की अधिसूचना के अनुसार एसडीएम को अभिहित अधिकारी की अतिरिक्त जिम्मेदारी देना था। अधिकारियों ने सहायक औषधि नियंत्रकों (एडीसी) को अभिहित अधिकारी बनाने संबंधी आदेश जारी करवा दिया।
2015 से 2016 के दौरान कोई अभिहित अधिकारी नहीं था। तब दो अधिकारियों को इसकी जिम्मेदारी दी गई थी। इसके बाद आयुक्त एसएन राठौर ने 16 जिलों में पदस्थ सहायक औषधि नियंत्रकों को अभिहित अधिकारी की अतिरिक्त जिम्मेदारी दे दी थी।
फूड सेफ्टी स्टैंडर्ड ऑफ इंडिया यानि एफएसएसआई ने प्रदेश सरकार को 4 अगस्त तक अभिहित अधिकारी नियुक्त करने की मोहलत दी थी, लेकिन सरकार अभी तक यह तय नहीं कर पाई। ट्रेनिंग तक नहीं दी फार्मेसी की पढ़ाई करने वाले एडीसी को दवा की जानकारी होती है, लेकिन फूड की नहीं। दवा पैकेट में होता है, इसलिए इसकी सैंपल एडीसी आसानी से ले लेते हैं। दूध में किन-किन केमिकल की मिलावट स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होता है अथवा आम को कार्बाइड से पकाने का क्या नुकसान है, ये फूड एक्ट में है कि ड्रग एक्ट में। दूध में कौन सा घटक यानी वसा, कैल्शियम कितनी मात्रा में होनी चाहिए, यह फूड अफसरों को पता होता है।
यह काम है अभिहित अधिकारी का अभिहित अधिकारी सीएमओ के अंडर काम करता है। उनका मुख्य काम खाद्य पदार्थ बेचने व बनाने के लिए लाइसेंस जारी करना होता है। समय-समय पर वे मिठाई दुकान के अलावा आटा चक्की, खाद्य पदार्थ बनाने वाली फैक्ट्री व दुकानों पर छापा मारकर सैंपल भी लेते हैं।
16 जिलों में सहायक औषधि नियंत्रक को अभिहित अधिकारी और बाकी में सीएमएचओ को प्रभार दिया गया है। सैंपलिंग का काम अच्छा चल रहा है कोई दिक्कत नहीं है। एसएन राठौर, नियंत्रक, खाद्य एवं औषधि प्रशासन