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वनवास काल में माता सीता ने राजिम के संगम में की थी कुल देवता की पूजा-अर्चना

locationरायपुरPublished: Aug 04, 2020 07:05:38 pm

Submitted by:

lalit sahu

प्रथम चरण के लिए चिन्हित 9 स्थलों में गरियाबंद जिले का प्रयागराज के नाम से विख्यात राजिम भी शामिल है। राजिम को पर्यटन की दृष्टि से बनाए गए प्लान में राम वन गमन पथ के लिए राजिम को चिन्हांकित किया गया है।

वनवास काल में माता सीता ने राजिम के संगम में की थी कुल देवता की पूजा-अर्चना

वनवास काल में माता सीता ने राजिम के संगम में की थी कुल देवता की पूजा-अर्चना

रायपुर. राजिम को छत्तीसगढ़ की धर्मनगरी के नाम से जाना जाता है। राजिम में महानदी के तट पर राजीव लोचन मंदिर परिसर से लगी सीताबाड़ी है। राजिम को धर्म नगरी और लोक कला संस्कृति का गढ़ कहा जाता है। राजिम में पैरी, सोंढूर और महानदी का पवित्र संगम स्थल त्रिवेणी है। इसी त्रिवेणी संगम स्थल पर कुलेश्वर महादेव का प्राचीन मंदिर है। कुलेश्वर महादेव के संबंध में किवदंती है कि 14 वर्ष के वनवास काल में माता सीता ने संगम स्थल में स्नान कर अपने कुल देवता की नदी के रेत से विग्रह बनाकर पूजा-अर्चना की थी। इसी कारण उनका नाम कुलेश्वर महादेव है।
राजिम छत्तीसगढ़ के लिए जन आस्था का केन्द्र है। यहां प्रतिवर्ष माघी पुन्नी मेला से महाशिवरात्रि तक विविध कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। यहां देश-विदेश से साधु-संतों एवं दर्शनार्थियों का शुभागमन होता है। कुलेश्वर महादेव मंदिर के समीप लोमश ऋषि का आश्रम है। उसी के समीप एक माह तक लोग कल्पवास करते है। राजिम क्षेत्र को छत्तीसगढ़ की पंचकोशी परिक्रमा के नाम से भी जाना जाता है। पंचकोशी परिक्रमा में 5 स्वयंभू शिवलिंग की लोग साधना पूर्वक परिक्रमा करते हैं। जिनमें प्रमुख कुलेश्वर महादेव, राजिम, पठेश्वर महादेव, पटेवा, चम्पेश्वर महादेव, चंपारण, फणिकेश्वर महादेव, फिंगेश्वर और कोपेश्वर महादेव कोपरा है। राजिम पुरातत्वों एवं प्राचीन सभ्यता के लिए प्रसिद्ध है। यहां भगवान राजीव लोचन की भव्य प्रतिमा स्थापित है। सीताबाड़ी में उत्खन्न कार्य किया रहा है। जिसमें सम्राट अशोक के काल का विष्णु मंदिर, मौर्य कालीन अवशेष, 14वीं शताब्दी का स्वर्ण सिक्का, अनेक मूर्तियां और सिंधुघाटी सभ्यता से जुड़ी अनेक कलाकृतियां मिल रही है। राजिम माघी पुन्नी मेला महोत्सव में पूरे छत्तीसगढ़ की लोक कला संस्कृति का दर्शन होता है।
छत्तीसगढ़ का प्रयागराज राजिम जहां सोंढुर, पैरी और महानदी का संगम है। कहा जाता है कि राम वन गमन के दौरान भगवान श्री रामचन्द्र सीता और भाई लक्ष्मण के साथ लोमश ऋषि आश्रम में ठहरे थे। वे पंचकोशी धाम के स्थलों से भी गुजरे थे। वनवास काल में राम ने इस स्थान पर अपने कुलदेवता महादेव की पूजा-अर्चना की थी। त्रिवेणी संगम राजिम की पहचान पहले से ही आस्था, धर्म और संस्कृति नगरी के रूप में स्थापित हैं। राजिम नगरी की धार्मिक, पौराणिक और ऐतिहासिक मान्यता है। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की पहल पर राम वन गमन परिपथ को पर्यटन की दृष्टि से विकसित किया जा रहा है। पर्यटन विभाग द्वारा इसके लिए लगभग 137 करोड़ रुपए का कॉन्सेप्ट प्लान बनाया गया है। प्रथम चरण के लिए चिन्हित 9 स्थलों में गरियाबंद जिले का प्रयागराज के नाम से विख्यात राजिम भी शामिल है। राजिम को पर्यटन की दृष्टि से बनाए गए प्लान में राम वन गमन पथ के लिए राजिम को चिन्हांकित किया गया है। कुलेश्वर मंदिर और राजीव लोचन मंदिर तथा लोमश ऋषि आश्रम का सौंदर्यकरण कर वहां जरूरी सुविधाएं विकसित करने योजना तैयार की गई है। इस योजना में राजिम के आस-पास 25 किलोमीटर परिधि में पंचकोशी धाम यात्रा के प्रमुख स्थलों में मूलभूत सुविधाएं- पेयजल, यात्री प्रतीक्षालय, पर्यटन सुविधा केंद्र सहित अनेक सुविधाएं विकसित की जाएगी।

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