‘पत्रिकाÓ ने जनरेशन, ट्रांसमिशन और डिस्ट्रीब्यूशन तीनों कंपनियों के उच्च अधिकारियों से बात की। इन्होंने कहा कि महंगाई के हिसाब से दरों में हर साल पांच प्रतिशत की वृद्धि करनी चाहिए। एेसा नहीं करने पर अंतत: जनता पर ही ज्यादा भार आता है। अधिकारियों का कहना है, कंपनी को बचाना है तो दरें बढ़ानी ही होगी।
कंपनियों ने बोर्ड के समक्ष दरों में वृद्धि का प्रस्ताव रखा, जो पास कर दिया गया था। मगर इस पर मुख्यमंत्री भूपेश बघेल से कंपनी के अफसरों ने चर्चा ही नहीं की थी। इसलिए आयोग को प्रस्ताव भेजने में देर पर देर होती चली गई। अंत में समय-सीमा बीत गई और आयोग को स्वयं ही संज्ञान लेकर, कंपनियों को नोटिस भेजा। जिसके बाद कंपनियों ने आय-व्यय का ब्यौरा भेजना शुरू किया। अब दरों में वृद्धि करनी है या फिर नहीं, यह आयोग के हाथ में है।
सरकार स्टील उद्योग, माइनिंग व अन्य उद्योगों के लिए टैरिफ का निर्धारण करती है। स्टील उद्योग को ८० पैसे प्रति यूनिट तक सस्ती बिजली मिलती है, जिसकी भरपाई सरकार बिजली कंपनी को करती है। बीते कई वर्षों से यह राशि भी सरकार ने कंपनी को नहीं दी है। कम टैरिफ की बिजली से भी नुकसान हुआ। इसके अलावा मड़वा प्लांट से पड़ोसी प्रदेश को बेची गई बिजली का राशि की वसूली भी नहीं हो पा रही है।
बिजली कंपनी के अध्यक्ष शैलेंद्र शुक्ला ने बताया कि आय-व्यय का ब्यौरा आयोग को भेज दिया है। उसमें सब कुछ उल्लेख है। कंपनी घाटे में नहीं है, लेकिन नोशनल लॉस जो १० सालों का है वो तो है ही।