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पारागांव निवासी किसान तुकाराम कुंभकार ने बताया कि हमारे गांव के करीब 100 किसान दीपावली के बाद नदी में आपस में 40-40 फीट बांटकर खेत तैयार करने में जुट जाते हैं, 10 से 20 दिन में खेत तैयार कर उसमें कलिंदर के बीज डालते हैं, जिससे फसल आने में करीब दो माह लग जाते हैं।
हाथी व रेत उत्खनन भी एक कारण
नोहर चक्रधारी ने बताया कि अब कलिंदर की खेती कर नही पा रहे है, नदी में रेत उत्खनन से घाटों की रेत तेजी से खत्म हो रहा है। जिससे कारण नदी से रेत निकालने वाले हमारे बाड़ी के आसपास रेत उत्खनन करते है और रात में जानबूझकर हमारे खेत के पास से आवाजाही करके खेत नुकसान पहुंचाने की कोशिश करते है, ताकि हम खेती छोड़ दे। इसके साथ ही हाथी भी हमारे खेत में आ जाते है, जिसके कारण फसल बर्बाद हो जाता है।
यहां नही मिल रहा है कलिंदर
शहर के व्यापारी विष्णु गुप्ता ने बताया कि गर्मी के समय हर साल शहर में कलिंदर की डिमांड बढ़ जाती है। इस साल भी अच्छी मांग है। इस बार आरंग,राजिम, महासमुंद व सिरपुर के आसपास में कलिंदर का फसल कम होने के कारण ओडिसा और महाराष्ट्र से मंगाना पड़ रहा हैं। दो साल पहले कलिंदर का कीमत थोक में 10 से 15 रुपए प्रति किलो मिलता था, इस 15 से 20 रुपए हो गया है।