पर्यावरण संरक्षण मंडल से मिली जानकारी के मुताबिक राजधानी के क्षेत्रीय कार्यालय के अंर्तगत आने वाले उद्योगों की लगातार मॉनिटरिंग की जा रही है। 24 रोलिंग मिल इकाइयों में से 20 रोलिंग मिल इकाइयों ने आवश्यक सुधार कर लिया है। अधिकारियों ने बताया कि क्षेत्रीय कार्यालय के अधिकारियों द्वारा आकस्मिक निरीक्षण कर कार्यवाही की जा रही है।
क्षेत्रीय कार्यालय रायपुर के माध्यम से रेस्पिरेबल डस्ट सेम्पलर के माध्यम से नेशनल एम्बियंट एयर क्वालिटी मॉनिटरिंग प्रोग्राम के अंर्तगत परिवेशीय वायु की क्वालिटी जांचने के लिए राजधानी क ेचार अलग-अलग इलाकों की रिपोर्ट ली गई, जिसमें वर्ष 2018, 2019 के मुकाबले वर्ष 2020 में प्रदूषण कम आंका गया। राजधानी में चिमनी उत्सर्जन पर सातों दिन 24 घंटे निगरानी रखने के लिए 17 प्रकार के वायु प्रदूषणकारी प्रकृति के उद्योगों में ऑनलाइन इमीशन मॉनिटरिंग सिस्टम की स्थापना कराई गई है।
– पर्यावरण विभाग की दो महीने कार्यवाही
क्षेत्रवार पीएम- 10 के आंकड़े
वर्ष-उरला-कबीर नगर-सिलतरा 2018-68.08-60.63-77.77
2019-72.55-63.08-77.24 2020-57.80-51.90-56.36
(आंकड़े-माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर में) —
कलेक्टोरेट परिसर के आंकड़े वर्ष- पीएम-10- पीएम 2.5
2018-56.28-30.07 2019-50.30-28.88
2020-45.01-30.35
क्षेत्रवार पीएम- 10 के आंकड़े
वर्ष-उरला-कबीर नगर-सिलतरा 2018-68.08-60.63-77.77
2019-72.55-63.08-77.24 2020-57.80-51.90-56.36
(आंकड़े-माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर में) —
कलेक्टोरेट परिसर के आंकड़े वर्ष- पीएम-10- पीएम 2.5
2018-56.28-30.07 2019-50.30-28.88
2020-45.01-30.35
(आंकड़े- माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर में ) प्रदूषण कम होने का दावा, लेकिन जांच मशीन ही खराब
पर्यावरण विभाग की ओर से जारी आंकड़ों में भले ही प्रदूषण कम होने की बात कही जा रही है, लेकिन जमीनी हकीकत यह है कि शहर के इन स्थानों पर मशीनें महीने में 8 से 10 दिन खराब रहती है। कई इलाकों में 15 दिन तक सही रिपोर्ट नहीं मिलती। ऐसे में पर्यावरणीय विशेषज्ञों ने विभाग के सरकारी आंकड़ों पर सवाल खड़े किए हैं। इन आंकड़ों को उद्योगों के पक्ष में बताया गया है, जबकि वास्तव में प्रदूषण के आंकड़े कई इलाकों में बढ़े हैं।
पर्यावरण विभाग की ओर से जारी आंकड़ों में भले ही प्रदूषण कम होने की बात कही जा रही है, लेकिन जमीनी हकीकत यह है कि शहर के इन स्थानों पर मशीनें महीने में 8 से 10 दिन खराब रहती है। कई इलाकों में 15 दिन तक सही रिपोर्ट नहीं मिलती। ऐसे में पर्यावरणीय विशेषज्ञों ने विभाग के सरकारी आंकड़ों पर सवाल खड़े किए हैं। इन आंकड़ों को उद्योगों के पक्ष में बताया गया है, जबकि वास्तव में प्रदूषण के आंकड़े कई इलाकों में बढ़े हैं।