रायपुर। कृषि प्रधान छत्तीसगढ़ में किसानों को उनके द्वारा फसल बीमा के भरे गए प्रीमियम से भी कम का भुगतान करना विश्वासघात करने जैसा है। सरकारी सर्वे के मुताबिक
दुर्ग जिले के 34244 किसानों की फसल चौपट हुई है, जबकि बीमा कंपनी ने महज 11609 किसानों को बीमा भुगतान जारी किया है। इन किसानों को सात रुपए से लेकर सौ रुपए तक भुगतान स्वीकृत करने से बीमा कंपनी की नीति, नीयत और कार्यप्रणाली पर प्रश्नचिह्न लग गया है।
छत्तीसगढ़ को धान का कटोरा कहा जाता है, लेकिन फसल चौपट होने और बीमा कंपनी की वजह से किसानों की झोली खाली है। अफसोसनाक है कि छत्तीसगढ़ में न किसानों की स्थिति ठीक है, न खेती-किसानी की, न सिंचाई संसाधानों की, न फसलों को सुरक्षित रखने की और न ही सूखा राहत व फसल बीमा के उचित भुगतान की। लगता है कृषि और किसान का उत्थान व सुरक्षा सरकारी प्राथमिकता में शुमार नहीं है। होता तो किसान आर्थिक तंगी से नहीं जूझते। प्रदेश में किसानों द्वारा की जा रही आत्महत्या किसी से छिपी नहीं है। ऐसी स्थिति को सूखे ने और भी भयावह बना दिया है। किसानों से किए गए वादों को पूरा नहीं करने से सरकार की भी नीयत पर सवाल उठ रहे हैं।। किसान मात्र वोट बैंक नहीं है। वे अर्थव्यवस्था की रीढ़ हैं।
किसान फसल बीमा तो कराते हैं, लेकिन कभी गलत सर्वे, तो कभी कम भुगतान के कारण बीमा का वास्तविक लाभ नहीं मिलने से वे हताश-निराश हो जाते हैं। और, यदि कभी सौभाग्यवश अच्छी फसल हो गई तो उसका उचित मूल्य नहीं मिल पाता। आज खेती-किसानी घाटे का सौदा साबित हो रही है। सिंचाई सुविधाओं के अभाव में हर वर्ष हजारों एकड़ की फसल बर्बाद हो जाती है। इन हालात में खेती-बाड़ी, फसल और किसानों का संरक्षण, संवर्धन और सुरक्षा ही आखिरी विकल्प है। सभी फसलों का समर्थन मूल्य निर्धारण अनिवार्य हो गया है। फसलों के भंडारण और सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम करने होंगे। किसानों को लागत का दुगुना दाम तथा सूखा राहत व फसल बीमा का त्वरित व वास्तविक लाभ दिलाना अत्यंत जरूरी है।