कोरोना ने पिछले दो साल से इस पर ब्रेक लगा दिया है। इससे उपजे घाटे से उबरने के लिए किसान अब फल और सब्जियों की खेती छोड़ धान का रुख कर रहे हैं। जानकारों के मुताबिक करीब 5 फीसदी किसान फल और सब्जियों के रकबे को इस बार धान में बदल रहे हैं।
एक साल में दो बार करीब चार माह लॉकडाउन में बीता है। जिससे लोकल बाजार में फल और सब्जियों की खपत घट गई और कीमत नहीं मिली। सीमाएं सील होने के कारण दूसरे जिले व राज्यों में सप्लाई संभव नहीं हुई। इससे किसानों को फल और सब्जियां खेतों में ही छोडऩा पड़ा। जिले में टमाटर-शिमला मिर्च की डिमांड अरब देशों के अलावा बांग्लादेश व पाकिस्तान में है। छत्तीसगढ़ के पड़ोसी राज्यों में कुंदरू, केला, पपीता की मांग बनी रहती है और इसकी सप्लाई दिल्ली तक होती है।
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– बोड़ेगांव के किसान देवेंद्र ताम्रकार करीब 25 एकड़ में सब्जियों की खेती करते हैं। केला और पपीता अंधड़ में तबाह हो गया। लॉकडाउन के कारण सब्जियों को खेतों में ही छोडऩा पड़ा। इस बार खरीफ में लगभग 20 एकड़ में धान की फसल ले रहे हैं।
– अरसनारा के युवराज देशमुख और परसोली के किसान गोपाल पटेल भी करीब 20 एकड़ में उद्यानिकी फसलों की खेती करते हैं। इस बार टमाटर के साथ लौकी और बैंगन की फसल लगाई थी। यहीं के विष्णु पटले, गणेश पटेल, उत्तम साहू भी टमाटर की खेती कर रहे थे। सबको नुकसान उठाना पड़ा।
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कोरोना के कारण बड़े शहरों की मंडियों को लेकर अनिश्चितता की स्थिति है। ऐसे में अन्य प्रदेशों में सप्लाई संभव हो पाएगी अथवा नहीं यह स्पष्ट नहीं है। इसलिए किसान सब्जियों की खेती से परहेज कर रहे हैं। धान की प्रदेश में खरीदी निश्चित है। धान का समर्थन मूल्य भी बढ़कर 2500 रुपए क्विंटल तक पहुंच गया है। इसलिए धान की खेती में जोखिम नहीं है।
आंकड़े बोलते हैं
– 46 हजार हेक्टेयर में साग-सब्जियों की हो रही खेती
– 1 लाख 89 हजार 224 हेक्टेयर कुल रकबा है खेती का
– 8.28 लाख मीट्रिक टन सब्जी की हो रही पैदावार
– 1 लाख 90 हजार मीट्रिक टन टमाटर सिर्फ टमाटर का उत्पादन