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अफ्रीका के खेतों में लहराएगा कृषि विवि में तैयार किया गया बीज का फसल

locationरायपुरPublished: May 20, 2022 09:00:54 pm

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CG Desk

– धान की नवीन प्रजातियों के विकास हेतु कृषि विवि एंव सीजीआईएआर के मध्य हुआ अनुबंध- अफ्रीका के सात देशों में कृषि बीजों का होगा परीक्षण, प्रदेश के किसानों को भी मिलेगा लाभ

अफ्रीका के खेतों में लहराएगा कृषि विवि में तैयार किया गया बीज का फसल

अफ्रीका के खेतों में लहराएगा कृषि विवि में तैयार किया गया बीज का फसल

रायपुर। छत्तीसगढ़ के इंदिरा गांधी कृषि विवि की चर्चा नेपाल के बाद अब अफ्रीका में भी होगी। अफ्रीका के सात देशों में कृषि विवि में तैयार किया गया बीज लहराएगा। इंदिरा गांधी कृषि विवि नाईजिरिया, तंजानिया, युगांडा, मेडगास्कर, सेनेगल, मोजाम्बिक और घाना में धान की नवीन उन्नत प्रजातियों के विकास में तकनीकी मार्गदर्शन एवं सहयोग प्रदान करेगा। शुक्रवार को कृषि विवि प्रबंधन एवं कंसल्टेटिव ग्रुप ऑफ इन्टरनेशनल एग्रीकल्चरल रिसर्च (सी.जी.आई.ए.आर.) के मध्य ‘‘क्रॉप टू एण्ड हंगर’’ परियोजना के संचालन हेतु एमओयू हुआ है। इस एमओयू पर कृषि विश्वविद्यालय की ओर से कुलपति डॉ. गिरीश चंदेल एवं सीजीआईएआर की ओर से एक्सिलेन्स इन ब्रीडिंग प्रोग्राम के कॉर्डिनेटर डॉ. एस.के. कटियार ने हस्ताक्षर किए है।

3.50 करोड़ रुपए परियोजना के तहत होंगे खर्च
कृषि विवि प्रबंधन के अनुसार एमओयू के तहत अफ्रीकी देशों में धान अनुसंधान एवं विकास के लिए 3.50 करोड़ रुपए लागत की इस परियोजना का व्यय सी.जी.आई.ए.आर. द्वारा वहन किया जाएगा। इस परियोजना के तहत भविष्य की आवश्यकताओं एवं बाजार मांग को ध्यान में रखते हुए मौसम की विषमताओं के प्रति सहनशील एवं अधिक उत्पादन देने वाली धान की नवीन प्रजातियों का विकास किया जाएगा। परियोजना से छत्तीसगढ़ के किसानों को भी काफी लाभ मिलेगा।

इस नई तकनीकी से लैस होगा विवि
विवि प्रबंधन के अनुसार इस एमओयू के बाद सी.जी.ए.आई.आर. द्वारा एक करोड़ रूपये की अतिरिक्त राशि विवि को दी जाएगी। इस राशि से अनुसंधान अधोसंरचना विकास को स्पीड ब्रीडिंग तकनीकी एवं ब्रीडिंग मैनेजमेंट सिस्टम से लैसा किया जाएगा। स्पीड ब्रीडिंग तकनीक का फायदा यह होगा, कि नवीन प्रजातियों के विकास में लगने वाली अवधि को 14-15 वर्षाें से घटाकर 6-7 वर्ष किया जा सकेगा। इस परियोजना के तहत धान की नवीन प्रजातियों के विकास से संबंधित डाटाबेस भी तैयार किया जाएगा। इसका उपयोग इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय द्वारा भी नवीन प्रजाति विकास हेतु किया जा सकेगा। परियोजना में कार्य करने पर कृषि विश्वविद्यालय को अफ्रीका के अनेक देशों में उपलब्ध जर्मप्लाज्म भी प्राप्त होंगे, जिनका उपयोग धान की नवीन प्रजातियों के विकास के लिए किया जाएगा।

कृषि विवि प्रबंधन एवं कंसल्टेटिव ग्रुप ऑफ इन्टरनेशनल एग्रीकल्चरल रिसर्च (सी.जी.आई.ए.आर.) के मध्य ‘‘क्रॉप टू एण्ड हंगर’’ परियोजना के संचालन हेतु एम.ओ.यू. हुआ है। इस एमओयू के तहत नए-नए बीज तैयार किए जाएंगे और उनकी सप्लाई विदेशों में होगी। इसका फायदा प्रदेश के किसानों को भी मिलेगा।
– डॉ. गिरीश चंदेल, कुलपति, इंदिरा गांधी कृषि विवि

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