बेटे गन गए म्यूजिशियन मोती नगर निवासी विजय तिवारी को जब पता चला कि बड़ा बेटा राहुल को संगीत में रुचि है तो वे उसे उन लोगों से मिलाना शुरू कर दिए जिन्हें मौसिकी की गहरी समझ थी। दोस्तों ने सलाह दी कि राहुल को मुंबई लेकर जाना चाहिए। विजय ने बिना ज्यादा सोच मुंबई जाने का फैसला लिया। रायपुर में सुकून भरी जिंदगी जीने वाले विजय को क्या मालूम था कि मुंबई में सर्वावाइव करना कितना मुश्किल होता है। विजय ने बताया, रायपुर में मेरा कैटरीन का काम था। अच्छा चल रहा था। चूंकि मैंने मुंबई जाना तय कर लिया था। इसलिए यहां का काम समेटा और मुंबई चला गया। वहां मैंने प्राइवेट बैंक में नौकरी। वह काम भी काफी तलाश के बाद में मिला था। नौकरी से जो समय मिलता मैं राहुल को संगीतकारों से मिलाने जाता। आज खुशी है कि वह बड़े संगीतकारों के साथ काम कर रहा है।
छोटा बेटा आर्यन भी उसी के नक्शे कदम पर चल रहा है।
छोटा बेटा आर्यन भी उसी के नक्शे कदम पर चल रहा है।
रिटायरमेंट वाले दिन भेंट की किताब बचपन से मैं देखती थी कि पापा रामगोपाल शुक्ला कविता लिखते हैं। वे चाहते भी थे कि किताब छापें लेकिन वे ध्यान नहीं दे पाए। मैंने तय किया था कि बुक मैं छपवाऊंगी। जिस दिन पापा का रिटायरमेंट था। उस दिन मैं उन्हें सरप्राइज देना चाहती थी। इसकी तैयारी मैंने एक महीने में की। मम्मी की हेल्प लेकर मैंने पापा की डायरीज निकलवाई। सभी डायरी से चुनिंदा कविताएं अलग की। ये काम पापा से छुपकर होता था। साहित्यकार नीता श्रीवास्तव मेरी मम्मी की फ्रेंड हैं। उन्होंने भी मदद की। सब काम होता गया और रिटायरमेंट वाले दिन मैंने किताब भेंट की। से बहुत ज्यादा खुश हुए।
