वन अधिकारियों का कहना है कि माओवादी गतिविधि के कारण इंद्रावती टाइगर रिजर्व में एक भी ट्रैप कैमरा नहीं लगाया गया। वहीं उदंती सीतानदी टाइगर रिजर्व में भी कुछ क्षेत्र में ही कैमरे लगाए गए। इसके चलते बाघों की सही गणना नहीं हो पाई है। वन विभाग के अधिकारियों की माने तो एक मात्र अचानकमार टाइगर रिजर्व क्षेत्र में ही पूर्ण रूप से ट्रैप कैमरों व एम-स्ट्राईप सॉफ्टवेयर के जरिए गणना की गई है। वन अधिकारियों ने राज्य के उदंती सीतानदी और इंद्रावती और भोरमदेव टाइगर रिजर्व को बाघों का प्रमुख रहवास बताया है। इन टाइगर रिजर्व में बाघों की गिनती सही न होने का अलग-अलग कारण भी दिया जा रहा है। सीतानदी और इंद्रावती में ट्रैप कैमरे न लगाए जाने का आरोप है तो वहीं भोरमदेव टाइगर रिजर्व के बाघों का मध्यप्रदेश के कान्हा नेशनल पार्क में चले जाना बताया गया है। इस तरह वन अधिकारी अपने घुमावदार तर्कों से खुद की नाकामी को छिपाते हुए राष्ट्रीय गणना रिपोर्ट को ही झूठा साबित करने में लगे हुए हैं।
वैज्ञानिक गणना पद्धति को बताया गलत वन अधिकारियों कहना है कि प्रदेश में बाघों की गणना वैज्ञानिक पद्धति से की जाती है। साल 2014 में प्रदेश में बाघों की संख्या 46 आंकी गई तो वहीं चार साल बाद 2018 में संख्या 19 हो गई। अधिकारियों का कहना है कि यह एक लैंडस्केप का आंकड़ा है। एक लैंडस्केप का क्षेत्र काफी वृहद होता और उसमें एक से अधिक राज्यों का भी समावेश होता है। इसलिए वैज्ञानिक पद्धति से गणना सही नहीं है।
अब बताया मानसून में पेट्रोलिंग का अध्ययन करने ही गए हैं अधिकारी राज्य के वन अफसरों का पहले यह कहना था कि मध्यप्रदेश के पन्ना टाइगर रिजर्व में बाघों की संख्या कैसे बढ़ी उसकी जानकारी लेने भेजे गए हैं अधिकारी। पत्रिका ने जब सवाल उठाया कि मानसून में सेंचुरी के अंदर अधिकारी कैसे भ्रमण कर पाएंगे अधिकारी। अब अधिकारी कह रहे हैं कि मानसून के दौरान सुरक्षा पेट्रोलिंग व गश्ती कैसे हो पाती है उसका पता लगाने पत्रिका ने इसी मु²े को लेकर छत्तीसगढ़ से गए अधिकारियों के कार्यों पर सवाल खड़ा किया गया। जिसेक बाद अधिकारी अब यह कह रहे हैं कि वह इसी वस्तुस्थिति को जानने की ही कोशिश कर रहे हैं।
वर्जन- वाइल्ड लाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया की रिपोर्ट सही नहीं है। उनके द्वारा जिस तरीके राज्य में बाघों की गणना की गई है, उससे कभी भी सही गणना नहीं की जा सकती है। 4 साल पहले और अभी दोनों रिपोर्ट में छत्तीसगढ़ में बाघों की जो संख्या बताई गई है, वह तार्किक रूप से सही नहीं है।
– अतुल शुक्ला, पीसीसीएफ वाइल्ड लाइफ, छत्तीसगढ़