लाखों रुपए खर्च
हिंसक हाथियों रोकने के लिए वन विभाग का अमला दर्जनों योजनाओं के नाम पर लाखों रुपए खर्च कर चुका है। यहां तक की राज्य सरकार की पहल पर कर्नाटक से कुमकी हाथी लाए गए है। लेकिन, वह महावतों पर ही हमला कर रहे है। स्थानीय लोगों को जागरुक करने के लिए पूजा अर्चना और फिल्मे तक दिखाई जा रही है। इसके बाद भी जान-माल की हानि रूकने का नाम नहीं ले रही है। गौरतलब है कि प्रदेश में करीब 265 हाथी विचरण कर रहे है। इसमें सबसे अधिक सरगुजा वन परिक्षेत्र में सक्रिय है।
अधिकारों का हनन
सामाजिक कार्यकर्ता आलोक शुक्ला ने कहा कि वनवासियों और आदिवासियों को जंगल में मिलने वाले वनोपज को एकत्रित करने से रोकना उनके अधिकारों का हनन है। वन अधिकार अधिनियम के तहत वह इसे इकत्रित करने के साथ ही ट्रांसपोर्टिग भी कर सकते हैं। हाथियों और वन्य प्राणियों के हमले से होने वाली जनहानि पूरे वर्ष रहती है। अपनी नाकामी छिपाने के लिए और स्थानीय लोगों को जंगलों से बेदखल करने के लिए नई योजना बनाई गई है। इस नए फार्मूले पर अफसर प्रयोग करने में लगे हुए है। साथ ही मूल समस्या से लोंगो का ध्यान भटकाने के नाम पर यह खेल हो रहा है।
सुरक्षा को प्राथमिकता
एलीफैंट प्रोजेक्ट के प्रभारी केके बिसेन ने कहा कि हिंसक हाथियों के हमले से होने वाली जनहानि रोकने और स्थानीय लोगों की सुरक्षा को देखते हुए इसका आदेश जारी किया गया है। जनहित को देखते हुए कारोबारियों को भी खरीदारी करने से रोका जाएगा।