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आदिवासियों के महुआ बीनने पर रोक लगाएगा वन विभाग, बताई ये बड़ी वजह

locationरायपुरPublished: Apr 14, 2018 10:32:36 pm

Submitted by:

Ashish Gupta

तमाम कोशिशों के बाद भी मानव-हाथियों का द्वंद्व रोकने में नाकाम वन विभाग आदिवासियों के महुआ बीनने पर रोक लगाने की तैयारी कर रहा है।

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आदिवासियों के महुआ बीनने पर रोक लगाएगा वन विभाग, बताई ये बड़ी वजह

राकेश टेम्भुरकर/रायपुर. तमाम कोशिशों के बाद भी मानव-हाथियों का द्वंद्व रोकने में नाकाम वन विभाग आदिवासियों के महुआ बीनने पर रोक लगाने की तैयारी कर रहा है। इसके लिए बकायदा वन विभाग ने एक आदेश जारी कर हाथी प्रभावित क्षेत्रों में महुआ बीनने के काम ? को प्रोत्साहित नहीं करने के निर्देश दिए हैं। साथ वो एेसे कारोबारियों की सूची तैयार करवा रहा है, जो आदिवासियों से हाट-बाजार से महुआ खरीदते हैं। वन विभाग के इस रवैया से क्षेत्र के आदिवासियों में असंतोष है। वहीं विशेषज्ञ इसे आदिवासियों के अधिकारों का हनन बता रहे हैं।
आदिवासी क्षेत्र में महुआ आदिवासियों की जीविका का महत्वपूर्ण साधन है और वे सालों से इसका संग्रहण करते आ रहे हैं। इससे उन्हें आर्थिक मदद भी मिलती है, लेकिन पिछले कुछ दिनों में हाथी प्रभावित क्षेत्र में दो ग्रामीणों की मौत के बाद वन विभाग महुआ बीनने पर बंदिशें लगाने की तैयार कर रहा है। वन विभाग ने महुआ खरीदने वाले कारोबारियों के नाम-पते सहित सूची बनाने के निर्देश दिए है। साथ ही एेसे कारोबारियों को रोकने बाजार में टीम तैनात की जाएगी। अफसरों का मानना है कि यदि आदिवासी महुआ के लिए जंगल नहीं जाएंगे, तो हाथी और मानव के बीच हो रहे द्वंद्व को कुछ हद तक रोका जा सकता है।
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लाखों रुपए खर्च
हिंसक हाथियों रोकने के लिए वन विभाग का अमला दर्जनों योजनाओं के नाम पर लाखों रुपए खर्च कर चुका है। यहां तक की राज्य सरकार की पहल पर कर्नाटक से कुमकी हाथी लाए गए है। लेकिन, वह महावतों पर ही हमला कर रहे है। स्थानीय लोगों को जागरुक करने के लिए पूजा अर्चना और फिल्मे तक दिखाई जा रही है। इसके बाद भी जान-माल की हानि रूकने का नाम नहीं ले रही है। गौरतलब है कि प्रदेश में करीब 265 हाथी विचरण कर रहे है। इसमें सबसे अधिक सरगुजा वन परिक्षेत्र में सक्रिय है।

अधिकारों का हनन
सामाजिक कार्यकर्ता आलोक शुक्ला ने कहा कि वनवासियों और आदिवासियों को जंगल में मिलने वाले वनोपज को एकत्रित करने से रोकना उनके अधिकारों का हनन है। वन अधिकार अधिनियम के तहत वह इसे इकत्रित करने के साथ ही ट्रांसपोर्टिग भी कर सकते हैं। हाथियों और वन्य प्राणियों के हमले से होने वाली जनहानि पूरे वर्ष रहती है। अपनी नाकामी छिपाने के लिए और स्थानीय लोगों को जंगलों से बेदखल करने के लिए नई योजना बनाई गई है। इस नए फार्मूले पर अफसर प्रयोग करने में लगे हुए है। साथ ही मूल समस्या से लोंगो का ध्यान भटकाने के नाम पर यह खेल हो रहा है।

सुरक्षा को प्राथमिकता
एलीफैंट प्रोजेक्ट के प्रभारी केके बिसेन ने कहा कि हिंसक हाथियों के हमले से होने वाली जनहानि रोकने और स्थानीय लोगों की सुरक्षा को देखते हुए इसका आदेश जारी किया गया है। जनहित को देखते हुए कारोबारियों को भी खरीदारी करने से रोका जाएगा।

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