2010-11 में वहां कलेक्टर रहते हुए ओपी चौधरी ने जवांगा एजुकेशन सिटी के लिए उन लोगों से जमीन खाली करने को कहा। उन लोगों ने जमीन नहीं दी तो थानेदार को बोलकर दिनभर थाने में बिठाए रखा। माओवादी सहयोगी बताकर फंसाने की धमकी दी। इसकी वजह से वे लोग चुप हो गए।
कलेक्टर ने चुपके-चुपके गांव के पटवारी से प्रतिवेदन दिलवाकर उनका वन अधिकार पत्र निरस्त करा दिया। उनकी जमीन ले ली गई। उस समय दूसरी जगह पटटा देने, बच्चों को नि:शुल्क पढ़ाने और परिवार के एक सदस्य को नौकरी देने का भी वादा किया था, लेकिन उसे पूरा नहीं किया गया। दूसरी जमीन का वन अधिकार पत्र दिया गया है, लेकिन कब्जा आज तक नहीं मिला।
ग्रामीणों का कहना था, पिछले पांच साल से वे लोग खेती नहीं कर पा रहे हैं। इसकी वजह से उनके परिवार के सामने रोजी-रोटी का संकट आ खड़ा हुआ है। ग्रामीणों ने एजुकेशन सिटी के साथ जावंगा गांव का नाम जुड़ा होने पर भी आपत्ति की है।
उनका कहना था, एजुकेशन सिटी तीन गांवों बड़े पनेड़ा, जावंगा और गीदम की जमीन पर बनी है। इसमें सबसे बड़ा हिस्सा बड़े पनेड़ा का है, लेकिन हर जगह जावंगा के नाम से प्रचारित किया जाता है। ग्रामीणों ने राज्यपाल से कार्रवाई की मांग की है।
इधर पूर्व कलेक्टर और भाजपा नेता ओ पी चौधरी ने कहा कि मैंने पहले भी कहा था, दंतेवाड़ा में जिन कामों के लिए मुझे मनमोहन सिंह ने स्वयं सबसे बड़ा पुरस्कार दिया था, आज 6 साल बाद मेरे राजनीति में आते ही और कांग्रेस की सरकार बनते ही चेहरे बदल-बदलकर मेरे विरुद्घ षडय़ंत्र किए जा रहे हैं।
मुझे किसी भी प्रकार की जांच से कोई परहेज नहीं है। उनहोने कहा कि अपने 13 साल के प्रशासनिक जीवन में मैंने जो कुछ किया है वह छत्तीसगढिय़ा भाई-बहनों के साथ समर्पण भाव से किया है।