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‘बिकास के गंगा’ म धारे-धार बोहवत हेे जनता

locationरायपुरPublished: Jan 10, 2022 04:34:18 pm

Submitted by:

Gulal Verma

गांव म खेत-खार, जमीन नइ बांचही त गांव वालेमन कहां जाहीं? गांवमन म तरिया नदावत हे। मइदान नइ बाचत हे। रूखराई ल उजाड़त हें। ये कोती कोनो नइ सोचत हे। कारखाना लगाव, कालोनी बसाव, सडक़ बनाव। बस आजकल इही ल बिकास समझे-माने जावत हे। किसान जाय चूल्हा म।

‘बिकास के गंगा’ म धारे-धार बोहवत हेे जनता

‘बिकास के गंगा’ म धारे-धार बोहवत हेे जनता

मितान! हमर देस ह बहुेतच बडक़ा हे। डेढ़ सौ करोड़ के आबादी हे। दिनोंदिन अरबपति, करोड़पति, लखपतिमन के गिनती बाढ़त जावत हे। अकास, भुइंया अउ पानी याने सबे कोती बिकास के ‘गंगा’ बोहाय के हल्ला मचे हे। सिक्छा, सडक़, सहर बाढ़त हे। परयटन, उद्योग फरत-फूलत हे। फेर, गरीबमन अउ गरीब होवत जावत हें। अन्नदाता किसानमन बिन मारे मरत हें। फेर, सरकार चलइयामन ल ‘बिकास-बिकास’ के ढिंढोरा पीटे ले फुरसत नइये।
सिरतोन! हमर देस म जात-धरम, ऊंच-नीच, बड़े-छोटे, गरीब-बड़हर के लड़ई-झरगा ह खत्मेच नइ होवत हे। आजो छोटे जात के मनखे कहिके लोगनमन ल हीने जाथे। कतकोन जगा अलग बस्ती, अलग तरिया-कुआं के बेवस्था होथे। दूल्हा ल घोड़ा म घलो नइ चघन देवंय। लोगनमन सिक्छित होवत जावत हें, फेर छुआछूत के भेदभाव ल नइ छोड़ सकत हें। मनखे ल मनखे नइ मानत हें त फेर अइसन सिक्छा, अइसन बिकास के का कोनो मतलब हे! कुल मिला के अजादी के पहिली जइसे समाज ह रिहिस, वोमे कानून के डर के सेती बस थोरबहुत दिखावा बर बदलाव आय हे तइसे लागथे।
मितान! गांवमन म अन्नदाता किसानमन करजा-बोड़ी म लदा के घलो खेती-किसानी करथें। अपन खून-पसीना ओगरा के देसवासीमन बर अन्न उपजाथें। जादाझन किसानमन सिंचाई बर भगवान भरोसा हें। बाढ़त महंगई के जमाना म खेती-किसानी ह घाटा के सौदा होगे हे। अइसने किसानमन ऊपर ‘बिलई ताके मुसवा बारी म सपट के’ जइसे जमीन दलाल अउ उद्योगपतिमन नजर गड़ाय रहिथें। एक दिन अइसने हालात के सेती किसानमन खेत-खार ल बेच के बनिहार बन जथें। अपने खेत म बने कारखाना म मजदूरी करथें। हरियर-हरियर दिखत गांव ह करिया-करिया हो जथे। गांव ह न गांव रहि जाय, न सहर बन पाय। वोइसने किसान ह न किसान रहि जाय, न बनिहार
बन पाय।
सिरतोन! गांव म खेत-खार, जमीन नइ बांचही त गांव वालेमन कहां जाहीं? गांवमन म तरिया नदावत हे। मइदान नइ बाचत हे। रूख-राई ल उजाड़त हें। ये कोती कोनो नइ सोचत हे। कारखाना लगाव, कालोनी बसाव, सडक़ बनाव। बस आजकल इही ल बिकास समझे-माने जावत हे। किसान जाय चूल्हा म। लोगनमन बेघर-बार होवंय त होवन दे। गांववालेमन बेरोजगार होवत हें त वोकर किसमत। साहेबमन ल कमीसन से मतलब। नेतामन ल पद से मतलब। सरकार चलइयामन ल सत्ता सुख से मतलब।
जब सरकार चलइयामन ल सरकार बचाय के संसों हे। बिपक्छी पारटी वालेमन ल सरकार बनाय के चिंता हे। राजनीति के खेल ले पक्छ-बिपक्छ कोनो नइ उबरत हें। जंगल, जमीन अउ जनता जनारदन के सुध लेवइया नजर नइ आवत हे, त अउ का-कहिबे।

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