Indian Freedom Fighters: अंग्रेजों ने तिरंगा छीनने का प्रयास किया, लेकिन वे सफल नहीं हुए। घसिया मंडल ने अपनी तुतारी लाठी से अंग्रेज अफसर के चेहरे पर ऐसा प्रहार किया कि खून बहने लगा। अंग्रेज पुलिस घसिया मंडल पर पिल पड़े और बंदूक के कुंदे से मारने लगी। मार से सिर फट गया, लेकिन तिरंगा अंग्रेजों को नहीं दिया।
रायपुर•Aug 09, 2022 / 07:05 pm•
Sakshi Dewangan
Indian Freedom Fighters: दुर्ग. आजादी के दीवानों के लिए तिरंगे के सम्मान को लेकर क्या जज्बा था, यह अमर शहीद घसिया मंडल की कहानी से आसानी से समझा जा सकता है। आजादी के लिए आयोजित सभा में तिरंगा लहराकर लोगों में जोश भरने का प्रयास कर रहे बटंग निवासी सेनानी घसिया मंडल पर अंग्रेजों का कहर ऐसा बरपा कि उन्हें बंदूक की बट से मार-मारकर घायल कर दिया। फिर भी तिरंगा अंग्रेजों को छूने नहीं दिया। जेल में इलाज नहीं हुआ। वे शहीद हो गए।
135 दिन बाद जेल में हो गए शहीद
से नानी परिवार से संबद्ध व उनके संस्मरणों को संकलित करने वाले पाटन के हेमंत कश्यप बताते हैं कि बात वर्ष 1942 की है। इस दौरान स्वतंत्रता आंदोलन चरम पर था। 14 अक्टूबर को अमलीडीह का साप्ताहिक बाजार था। यहां गांधीजी के अनुयायियों ने सुराजी सभा बुलाई थी। सेनानी घसिया मंडल भी सभा में शामिल थे। तिरंगा लेकर वे मंच के बगल में खड़े हो गए। तभी वहां अंग्रेज अफसर पहुंच गए। अंग्रेजों ने तिरंगा छीनने का प्रयास किया, लेकिन वे सफल नहीं हुए। घसिया मंडल ने अपनी तुतारी लाठी से अंग्रेज अफसर के चेहरे पर ऐसा प्रहार किया कि खून बहने लगा। अंग्रेज पुलिस घसिया मंडल पर पिल पड़े और बंदूक के कुंदे से मारने लगी। मार से सिर फट गया, लेकिन तिरंगा अंग्रेजों को नहीं दिया।
अंग्रेजों ने सभा से स्थल से सीधे रायपुर ले जाकर घसिया मंडल को अचेतावस्था में ही 14 अक्टूबर 1942 को जेल में डाल दिया। घायल अवस्था व अंग्रेजों के कठोर यातनाओं के बीच वे जेल में 135 दिन रहे। इस दौरान भी वे जेल में बंदियों में राष्ट्रप्रेम भरने का काम करते रहे। अंतत: 27 फरवरी 1943 को जेल में ही उसकी मृत्यु हो गई। भारी सुरक्षा के बीच पैतृक ग्राम बटंग में अंतिम संस्कार किया गया। उनकी याद में उनके निवास के पास स्मारक भी बनाया गया है।