बीड़ी, सिगरेट और तम्बाकू का सेवन शरीर के हर अंग को शिथिल करते हुए जल्द ही इसके व्यसनकर्ता को मरघट की राह दिखा जाता है। शासन स्तर पर इस व्यसन मुक्ति हेतु अनेक विज्ञापनों के माध्यमों से सतत प्रयास जारी है। हमारा समाज इस बुरी लत से होने वाली विकृतियों से दशकों से लड़ते आ रहा है। बावजूद इसके न तो हमारे समाज के वरिष्ठ लोगों ने इससे तौबा की है, और न ही अपनी पीढ़ी को इससे होने वाले गंभीर परिणामों से अवगत कराने की हिम्मत की है। पूरी दुनिया में धूम्रपान और तम्बाकू का सेवन करनेे वालों की बढ़ रही तादाद को देखते हुए विश्व स्वास्थ्य संगठन भी चिंतित हो उठा। यही कारण है कि सर्वप्रथम 31 मई 1987 केा विश्व स्वास्थ्य संगठन ने तम्बाकू निषेध दिवस के रूप में मनाये जाने की घोषणा कर दी।
अब शैक्षणिक संस्थाओं से जले यह मशाल
आज से तीन दशक पूर्व विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा व्यक्त की गई चिंता पर अब तक कारगर सफलता प्राप्त नही हुई है।आपको बता दे सबसे अधिक इस लत की गिरफ्त में किशोर उम्र के लोग आ रहे है। 13 वर्ष से 19 वर्ष की उम्र को हमारा समाज संवेदनशील मानता आ रहा है। अब इस सोच को बदलना होगा। कारण यह कि कक्षा 5वीं के बाद से ही बच्चे तम्बाकू सेवन अथवा बीड़ी, सिगरेट का कस लगाते नज़र आ रहे हैं ।
महिलाएं और युवतियां भी हो रही आकर्षित
धूम्रपान पान और तम्बाकू सेवन महज पुरूष वर्ग ही नहीं वरन महिलाएं भी करती आ रही हैं। विकसिक देशों में धूम्रपान की लत महिलाओं और युवतियों पर तीव्रता के साथ अपना हक जमाते देखी जा सकती है। हमारे देश की युवा पीढ़ी उच्च शिक्षा हेतु विदेशों तक पहुंच रही है। इन देशों के आचार विचार का प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष असर भी हमारी युवा पीढ़ी पर पड़ रहा है। अमेरिकन मेडिकल एसोसिएशन जर्नल के अनुसार विश्व में लगभग एक अरब लोग धूम्रपान के शिकार है, जिनमें से करीब 5 करोड़ महिलाएं है।
नशे के खिलाफ कब्र खोदने की जरूरत
धूम्रपान और तम्बाकू का नशा व सामाजिक बुराई है, जिसे केवल कानून और दंड के बल पर दूर नहीं किया जा सकता। जिंदगी तबाह करने वाली इस बुराई से मुक्ति के लिए सामाजिक चेतना, जागृति और सभी वर्गों को एकजुट होकर मजबूती के साथ प्रयास करने की जरूरत है। जब तक सारा समाज एकता के सूत्र में बंधकर नशे के खिलाफ कब्र खोदने के लिए कमर नहीं कसेगा, तब तक इससे समग्र मुक्ति केवल सपना ही होगी।