हाईकोर्ट ने रायपुर-बिलासपुर फोरलेन निर्माण में लेटलतीफी के लिए ठेका कंपनी के निदेशकों को व्यक्तिगत रूप से पेश होने का आदेश दिया है। क्योंकि, ठेका कंपनी हाईकोर्ट के निर्देशों की अनदेखी कर रही है। हाईकोर्ट ने सड़क निर्माण में फ्लाईएश के उपयोग को अनिवार्य बताते हुए एनटीपीसी को स्वयं के खर्च पर 100 किलोमीटर की दूरी तक फ्लाईएश आपूर्ति करने तथा 100 से 300 मीटर की दूरी तक ठेकेदार और एनटीपीसी को आधा खर्च वहन करने के लिए कहा था। बावजूद इसके मुरुम और स्टोन डस्ट का इस्तेमाल किया गया। मनमानी का आलम यह है कि 5 साल से अधिक समय बीतने के बाद भी न निर्माण कार्य की नियमित निगरानी की जा रही है और न ही कार्य को समय पर पूरा करने की कोई योजना बनाई गई है। निर्माणाधीन रायपुर-बिलासपुर फोरलेन लोगों के लिए परेशानी का सबब बन गई है। सड़क निर्माण ठेका कंपनी के निदेशकों को गड्ढों और धूल से सराबोर मार्ग पर यात्रियों की तकलीफ देखना चाहिए, तो पता चलेगा कि हाईकोर्ट ने जो सख्ती दिखाई है, वह बहुत ही सामान्य है। कोर्ट का यह निर्देश ऐसे समय आया है जब न तो नई सड़कें बनी हैं और न ही पुरानी सड़कें आवागमन के लिए अनुकूल हैं। लोगों की सेहत व जीवन से खिलवाड़ किया जा रहा है। धूल उड़ती सड़कों पर आवागमन करना लोगों की नियति बन गया है। बावजूद इसके शासन मूकदर्शक बना हुआ है। हाईकोर्ट का निर्देश ठेका कंपनी व सरकारी एजेंसियों के जिम्मेदारों पर करारी चपत भी है। क्योंकि, रायपुर-बिलासपुर फोरलेन ही नहीं, बल्कि प्रदेशभर में सड़कोंं, ओवरब्रिजों व अंड़रब्रिजों के निर्माण में लेटलतीफी आम बात हो गई है। आखिर ऐसे विकास का क्या मतलब, जिससे प्रदूषण फैल रहा हो? लोग बीमारियों का घर बन रहे हों? लोगों की जान पर बन आई हो। सवाल है कि आखिर धूल से निजात कब मिलेगी? अफसोसनाक है कि हाईकोर्ट की नाराजगी और छत्तीसगढ़ पर्यावरण मंडल की चेतावनी का कोई असर दिखाई नहीं पड़ता। ठेकेदारों और निर्माण एजेंसियों की मनमानी-मनमर्जी बदस्तूर जारी हंै। अधिकतर मामलों में नोटिस और चेतावनी के बाद मामला टांय-टांय फिस्स हो जाता है। आखिर ऐसी चेतावनियों व निर्देशों का क्या मतलब जिससे सड़कों पर धूल उडऩी बंद न हो। समय पर निर्माण पूरा न हो। हर समस्या का समाधान हो सकता है, उसके लिए मजबूत इरादों और कर्तव्यनिष्ठा की जरूरत है। अब हाईकोर्ट ने जो निर्देश दिए हैं, उसका पालन होना चाहिए। उसके निर्देशानुसार सड़क निर्माण होना चाहिए। तभी शायद लोगों को धूल व कष्टमय सफर से निजात मिलेगी। सड़क मार्ग से आवागमन करने में लोग दुखी नहीं होंगे। हाईकोर्ट ही नहीं, प्रदेश के लोग भी यही चाहते हैं।