बलराम के जन्म से जुडी कथा
पंडित मनोज शुक्ल के अनुसार पौराणिक कथाओं में भगवान श्रीकृष्ण के ज्येष्ठ भ्राता बलराम के जन्मोत्सव के रूप में व्रत पूजन का विशेष महत्व है। अस्त्र के रूप में हल कंधे पर धारण करने वाले बलराम को इसीलिए हलधर कहा जाता है। उन्हीं के नाम पर इस पर्व का नाम हलषष्ठी (Hal Shashthi 2020) पड़ा है। इसीलिए माताएं हल चले खेतों के अन्न का उपयोग नहीं करती हैं, ना ही ऐसे स्थानों पर जाती हैं।
ये पूजन सामग्री
सगरी में बेलपत्र, भैंस का दूध, दही, घी, कांसी के फूल, श्रृंगार का सामान, लाई और महुआ का फूल, मिट्टी के बने भगुए में भरकर अर्पित करती हैं। भगवान भोलेनाथ से संतान सुख और लंबी उम्र का वरदान मांगती हैं। फिर उस प्रसाद को बच्चों और घर के सभी सदस्य को खिलाती हैं।
पूजन नियम बहुत सख्त
व्रती माताएं खेत, फार्म हाउस यहां तक की अगर घर के बगीचे में भी यदि हल का उपयोग हुआ होता है तो वहां भी नहीं जाती हैं। महुआ की टहनियां, पलास पेड़ की लकड़ी का दातुन करती हैं। मध्यान्ह के समय एक जगह एकत्रित होती हैं और आंगन में गड्ढा खोदकर कृत्रिम तालाब जिसे सगरी कहा जाता है। उसमें कांस का मंडप सजाकर भगवान शिव, गौरी, गणेश, कार्तिकेय नंदी बनाकर विराज पर पूजन करती हैं, कथा का श्रवण करती हैं।
पूजन सामग्री से सजा बाजार
शहर के आमापारा, शीतला माता-महामाया मंदिर के रास्ते पुरानी बस्ती, संतोषीनगर बाजार सहित अनेक जगहों पर सड़क किनारे हलषष्ठी व्रत पूजन की सामग्री का बाजार सजा रहा। दोपहर के समय काफी भीड़ रही, क्योंकि माताएं रविवार को निर्जला व्रत रखेंगी, बाजार नहीं जाएंगी। घरों के सामने और मंदिर परिसर में सगरी बनाकर भगवान शिव-पार्वती के फूली कांस का मंडप सजा कर विधि-विधान से पूजन कर संतान की लंबी उम्र की कामना करेंगी। महत्व इतना कि बिना हल चले खेत की फसही धान के चावल का भोग लगाती हैं।