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विश्वास पर कुठाराघात

locationरायपुरPublished: Sep 21, 2018 06:17:56 pm

Submitted by:

Gulal Verma

डॉक्टरों ने जीवित महिला को मृत घोषित किया, सात दिन के शिशु की खरीद-फरोख्त का मामला उजागर

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विश्वास पर कुठाराघात

प्रदेश में न मानव तस्करी रुक रही है और न ही अस्पतालों में मानवता को शर्मसार करने वाली घटनाएं। अब की बार राजधानी रायपुर स्थित प्रदेश के सबसे बड़े शासकीय अस्पताल डॉ. भीमराव आम्बेडकर हॉस्पिटल में डॉक्टरों ने जीवित महिला को मृत घोषित कर दिया। इतना ही नहीं, राजधानी के ही टिकरापारा थाना क्षेत्र के एक क्लीनिक में सात दिन के शिशु की खरीद-फरोख्त का मामला भी उजागर हुआ है। इस मामले में गिरफ्तार डॉक्टर, नर्स व उनके सहयोगीे इससे पहले चार बच्चों का सौदा कर चुके हैं। डॉक्टर इतने विश्वसनीय माने जाते हैं कि लोग उन्हें ‘भगवानÓ का दूसरा रूप समझते हैं। डॉक्टरों पर भरोसा इतना गहरा होता है कि परिजन मरीज को उन्हें सौंप देते हैं। उन पर जरा भी लापरवाही बरतने की कल्पना भी नहीं करते। ऐसे में जन्म लेने और जीवन बचने की जगहों में ही जीवन से खिलवाड़ और सौदेबाजी होने लगे तो उनके होने का औचित्य ही क्या रहेगा? जब बाड़ ही खेत खाने लगे तो फसल कहां जाए?
डॉक्टरों के खिलाफ बढ़ती शिकायतें बताती हैं कि वे लोगों के भरोसे को दरकिनार कर लापरवाही, मनमानी व मनमर्जी करने लगे हैं। जीवन बचने की अंतिम उम्मीद लेकर अस्पताल आने वाले जब वहां हुई लापरवाही के खिलाफ आवाज उठाने को मजबूर हो जाएं तो समझना चाहिए कि मामला वाकई गंभीर है। ऐसे में अस्पतालों में मरीजों की सेवा, सुरक्षा व निगरानी रखने के लिए अलग से विभाग प्रारंभ करना चाहिए। यह समय की मांग भी है और मरीजों की जरूरत भी।
आम्बेडकर अस्पताल में इससे पहले भी डॉक्टरों द्वारा संवेदनहीनता व अमानवीयता बरतने की दुखद व शर्मनाक घटनाएं हो चुकी हैं। गरीब मरीजों का उचित इलाज के अभाव में तड़पने, भटकने, परेशान होने, ठिठुरन भरी रात में फर्श पर सोने, सस्ती दवाइयां और भरपेट भोजन नहीं मिलने के मामले भी उजागर होते रहे हैं। विडम्बना है कि जो काम अस्पताल प्रबंधन और विशेषज्ञ व सीनियर डॉक्टरों को स्वत: करना चाहिए, उसे जूनियर डॉक्टरों के भरोसे छोड़ दिया जाता है। दूसरी ओर प्रदेश सरकार मानव तस्करी रोक नहीं पा रही है। बेशक, हर व्यक्ति के पीछे पुलिस खड़ी नहीं हो सकती है, लेकिन खाकी का खौफ और कानून का भय मानव तस्करों पर इतना तो होना ही चाहिए कि कोई ऐसा करने से पहले सौ बार सोचे। ज्यादतर मामलों में मानव तस्करी रोकने में असफलता का ठीकरा शासन-प्रशासन पर न फोड़ कर, उसका दोष ‘गरीबी, बेरोजगारी, निरक्षरता, लोकलाज, सामाजिक बदनामी और आजीविका के साधनों के अभावÓ पर मढ़ दिया जाता है।
बहरहाल, सरकार को मानव तस्करी रोकने और किसी भी अस्पताल में कभी भी डॉक्टरी पेशे को बदनाम करने वाली घटनाएं न हो, इसका पुख्ता इंतजाम करना चाहिए।
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