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स्मार्ट कार्ड से मजाक, सेहत से खेल

locationरायपुरPublished: May 17, 2018 07:41:24 pm

Submitted by:

Gulal Verma

स्वास्थ्य सुविधाओं का हाल-बेहाल

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स्वास्थ्य सुविधाओं के साथ जिस तरह से बीते दो दशकों में खिलवाड़ हुआ है वह बेहद आत्मघाती कदम है। एक तरफ बढ़ती स्वास्थ्य जागरुकता है तो दूसरी तरफ सरकारी अस्पतालों और स्वास्थ्य सुविधाओं मेंं बेजा गिरावट। ऐसे में भारत दुनिया के नक्शे में तो स्वास्थ्य पर्यटन के रूप में उभर रहा है, लेकिन यह निजी क्षेत्र के अस्पतालों और स्वास्थ्य सुविधाओं के बूते, न कि सरकारी अधोसंरचना के दम पर। बात अगर छत्तीसगढ़ की ही करें तो यहां पर स्मार्ट कार्ड जैसी सुविधा ही महज 4 से 5 सालों में दम तोडऩे लगी है। बीमा कंपनियों की चालाकी और राज्य सरकार की उदासीनता के चलते साल में औसतन 3 महीने तक यह कार्ड काम नहीं करते। स्वास्थ्य कोई पेट भरने का भोजन नहीं होता, जो कभी स्मार्ट कार्ड काम आ गया। जब जरूरत थी तब न आया।
एक तरफ केंद्र सरकार 5 लाख रुपए तक के इलाज मुफ्त कराने की घोषणा करती है तो राज्य सरकार एक अदद जारी योजना को मुकम्मल नहीं कर पाती। ऐसी कैसी योजना, जिससे वे भी परेशान हैं जिन्हें लाभ हो रहा है और वे भी जिन्हें लाभ देने की जिम्मेदारी है। और सोचने वाली बात तो ये भी है कि इससे वे मझोले किस्म की अफसर भी परेशान हैं जिनके कंधों पर जिला स्तर पर स्मार्ट कार्ड की जवाबदेही है। ऐसे में स्मार्ट कार्ड में चल रही लापरवाही को अत्यंत प्राथमिकता में लेने की जरूरत है। फिलवक्त तो यह योजना जनता की तरफ से सरकारी उपकार मान ली जा रही है। ‘सो जितना लाभ हो जाए अच्छा, जो न हो पाए सो न सहीÓ, की भावना खत्म करने की जरूरत है। ठीक ऐसे ही सरकार की तरफ से स्मार्ट कार्ड में चल रही लापरवाही को लेकर भी गंभीरता से विचार करने की जरूरत है।
जब चुनावी साल में ही लोक हितकारी योजनाओं का कवाड़ा हुआ पड़ा हो तो बाकी के 4 सालों में क्या उम्मीद की जाए। बीते 4 महीने से स्मार्ट कार्ड काम नहीं कर रहे, लेकिन इधर अफसर और बीमा कंपनियां कोई बहुत स्पष्ट नहीं कर पा रहीं। ऐसे मेंं क्या स्मार्ट कार्ड को लेकर बेहद गंभीरता से सोचने की जरूरत नहीं है?

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