रायपुर। बेहतर स्वास्थ्य सुविधा के लिए अस्पताल में पर्याप्त प्रशिक्षित स्टाफ का होना अत्यंत जरूरी है। नर्सें स्वास्थ्य व्यवस्था की महत्वपूर्ण धुरी होती हैं। वे अपने व्यवहार, वाणी और सेवाभाव से मरीजों में बीमारी से लडऩे और जीने की आस जगाती हैं। मरीज के परिजनों को ढांढस भी बंधाती हैं। स्वास्थ्य अमले में शामिल नर्सों व अन्य स्टाफ से यह उम्मीद की जाती है कि वे नि:स्वार्थ, मृदुभाषी और सेवाभावी हों। अब रही बात नर्सों के वेतन और स्टाफ बढ़ाने की मांग की, तो सरकार और स्वास्थ्य विभाग को इस पर गंभीरता बरतते हुए त्वरित उचित निदान करना चाहिए। क्योंकि, नर्सों की प्रदेशव्यापी हड़ताल से राजधानी
रायपुर स्थित प्रदेश के सबसे बड़े शासकीय अस्पताल डॉ. भीमराव आंबेडकर हॉस्पिटल सहित कई सरकारी अस्पतालों में व्यवस्था चरमरा गई है। परिचारिका संघ और स्वास्थ्य विभाग की खींचतान में मरीजों की जान जोखिम में डालना चिंतनीय है।
प्रदेश के सरकारी अस्पतालों में मरीजों को अव्यवस्था, लापरवाही, मनमानी, मनमर्जी से दो-चार होना आम बात है। कभी मरीजों को इलाज के लिए भटकना, तड़पना, परेशान होना पड़ता है तो कभी फर्श पर सोना। कभी मरीजों को जरूरी दवाइयां तक नहीं मिलती। कई बार तो जूनियर डॉक्टरों की हड़ताल की वजह से मरीजों की जान पर बन आती है।
नर्सों के आचरण से ऐसी कोई मंशा नहीं झलकनी चाहिए, जिसमें उनके पेशे का अपमान और लोगों के विश्वास को ठेस पहुंचती हो। कायदे से सरकार को नर्सों की मांगों पर तेजी के साथ विचार कर कोई फैसला लेना चाहिए। क्योंकि, उनकी समस्या को जितना टाला जाएगा, उनसे जुड़ी समस्याएं उतनी ही बढ़ती चली जाएंगी। अगर इनका वेतनमान और स्टाफ को बढ़ाने का फैसला होता है तो एक हद तक इससे मरीजों का भला ही होगा। नर्सों के बिना अस्पतालों में समय पर उचित स्वास्थ्य सुविधाएं मिलना असंभव हो जाएगा। नर्सों का शारीरिक ही नहीं, बल्कि मानसिक रूप से स्वस्थ व संतुष्ट होना भी जरूरी है। नर्सों की उपेक्षा न अस्पतालों के हित में है और न ही मरीजों के।