आदिवासी जोड़ो नीति के फार्मूले पर काम कर रहे शाह ने उस वक्त बड़ी सफलता हासिल की जब विधायक रामदयाल उइके ने कांग्रेस छोड़ भाजपा में शामिल कर हो गए। 18 साल बाद एक बार फिर रामदयाल उइके की घर वापसी को पार्टी एक बड़ी जीत के तौर पर देख रही है।
वहीं जानकार प्रदेश के आदिवासियों के बीच अपनी पहचान बना चुके रामदयाल उइके के भाजपा में शामिल से कांग्रेस के लिए इसे एक नुकसान के तौर पर देख रहे हैं। क्योंकि कांग्रेस उइके को इस विधानसभा चुनाव में एक बड़ा आदिवासी चेहरे के रूप में प्रोजक्ट कर रही थी लेकिन उइके के इस कदम से कांग्रेस को आदिवासी वोटों के मामले में नुकसान उठाना पड़ सकता है।
रामदयाल उइके छत्तीसगढ़ के कोरबा जिले की पाली-तानाखार विधानसभा सीट से विधायक हैं। उइके ने पिछले तीन बार से इस सीट पर जीत दर्ज की। इस सीट को कांग्रेस का मजबूत गढ़ माना जाता है। सत्ता में पिछले 15 वर्षों से बने रहने के बाद भी भाजपा इस सीट पर कब्जा करने में असफल रही है।
छत्तीसगढ़ में 2013 में हुए विधानसभा चुनावों के आकड़ों पर गौर करें तो आदिवासी वोटरों ने भारतीय जनता पार्टी को सिरे से नकार दिया था। सरगुजा और बस्तर जैसे आदिवासी बाहुल्य संभागों की 26 में से बीजेपी ने सिफ 11 सीटों पर ही जीत दर्ज की थी। लेकिन इस बार बीजेपी आदिवासी सीटों को जीतने के लिए कोई भी कसर नहीं छोड़ना चाहती।