प्यार से हाथ फेर देती हूं वो मुस्कुरा देते हैं। टाइम मैनेजमेंट पर उनका कहना है, मेरे लिए पहले फैमिली है। मैं बराबर वक्त देती हूं। आज के दौर में काम जरूरी है लेकिन परिवार से बड़ा नहीं इसलिए एडजेस्ट करना होता है। जब गुस्सा आता है तो सो जाती हूं। किसी से बात नहीं करती या फिर अपने बेटों के नॉटी वीडियो देख लेती हूं मन शांत हो जाता है।
हर काम पहले कर देती हूं
रचना दुबे गरियाबंद जिले के फिंगेश्वर ब्लॉक में टीचर हैं। वे रोजाना अपडाउन करती हैं। वे बताती हैं कि जब कभी उनके हसबैंड नाराज होते हैं तो स्माइल के साथ उनके हर काम टाइम से पहले कर देती हूं। जल्द ही उनकी नाराजगी दूर हो जाती है। जॉब और घर में टाइमिंग के सवाल पर वे बताती हैं कि संडे तो परिवार के साथ ही बीतता है। इसके अलावा छुट्टी के दिन रिश्तेदारों व सामाजिक आयोजनों में हिस्सा लेती हूं। गुस्सा आने पर बड़बड़ाती जरूर हूं लेकिन जब अपनी बेटियों धानी और आद्या को देखती हूं तो गुस्सा फुर्र हो जाता है।
रुठने-मनाने का वक्त ही नहीं
एक एजुकेशन सोसायटी की रजिस्ट्रार शाहिन खान कहती हैं कि मेरे हसबैंड दूसरे शहर में जॉब करते हैं। एेसे में हम दोनों के पास वक्त ही नहीं रहता रूठने व मनाने का। जब भी टाइम मिलता है अच्छे से स्पेंड करते हैं। रही बात गुस्से की तो मैं इसे हमेशा अवाइड करती हूं। क्योंकि गुस्सा आपके काम को प्रभावित करता है। समाज में जितना बन पड़ता है वक्त जरूर देती हूं।