दूसरी तरफ राज्य सरकार भी बाघों को लेकर संवेदनशील नहीं दिखाई दे रही। 24 नवंबर 2019 को सीएम हाऊस में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की अध्यक्ष में राज्य वन्य जीव संरक्षण बोर्ड की बैठक हुई थी। जिसमें बाघों की संख्या को बढ़ाने के लिए चार अहम फैसले लिए गए थे। मगर अब तक उन पर अनुमोदन नहीं आया है। इस सबके बिना बाघों के संरक्षण के सभी प्रयास नाकाफी हैं।
24 नवंबर को सीएम की अध्यक्षता में हुई वन्य जीव संरक्षण बोर्ड की बैठक में लिए गए निर्णय-
– प्रदेश में बाघों की संख्या को बढ़ाने के लिए राज्य सरकार राष्ट्रीय व्याघ्र संरक्षण प्राधिकरण की मदद लेगी। इसके साथ ही मध्यप्रदेश से चार मादा और दो नर बाघ की रिकवरी योजना के तहत छत्तीसगढ़ लाया जाएगा।
– अचानकमार टाइगर रिजर्व में एक मादा है, जबकि नर बाघों की संख्या चार है। इनके बीच वर्चस्व की लड़ाई इनके लिए ही खतरा बन गई है। दूसरी तरफ नर-मादा का अनुपात वैज्ञानिक दृष्टि से सही नहीं है। उदंती-सीतानदी टाइगर रिजर्व में एक मादा बाघ है, नर एक भी नहीं। यही कारण है कि अचानकमार से एक बाघ उदंती में शिफ्ट किया जाएगा।
– बाघों की संख्या में इजाफा कैसे हो, इसे लेकर भारतीय वन्यजीव संस्थान (डब्ल्यूआईआई) की मदद ली जाएगी। प्रस्ताव को मंजूरी दी गई है। – बाघों को पहली बार रेडियो कॉलर लगाया जाएगा, ताकि इनके हर एक मूवमेंट पर नजर रखी जा सके। राज्य ने केंद्र से रेडियो कॉलर लगाने की अनुमति मांगीं है।
फैक्ट फाइल-
टाइगर रिजर्व- कुल बजट- जारी इंद्रावती- 336.31- 83.3 अचानकमार- 498.38- 130.42 उदंती-सीतानदी- 398.6- 142.3 (नोट- यह राशि लाखों में है।)
जरूरी है बाघ-
– बाघ जंगल के ईको सिस्टम को बनाए रखता है।
– बाघ के जंगल में होने से जंगल, लकड़ी तस्करों से सुरक्षित रहते हैं। – बाघ के होने से जंगलों में शिकारियों को भय होते है, वन्य जीव सुरक्षित रहते हैं। बाघ है पर्यटकों की पहली पसंद-
बाघ पर्यटन के लिहाज से बेहद अहम माना जाता है। पेच राष्ट्रीय उद्यान, कान्हा राष्ट्रीय उद्यान और बांधवगढ़ राष्ट्रीय उद्यान में राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय पर्यटकों की भारी आवाजाही रहती है। यहां पर्यटक बाघों को देखने ही जाते हैं। इस लिहाज से प्रदेश के किसी भी अभ्यारण्य को विकसित नहीं किया गया। पर्यटकों के आने से न सिर्फ राज्य को पहचान मिलती है, बल्कि स्थानीय लोगों के लिए रोजगार के नए विकल्प खुलते हैं। जानकारों का मानना है कि छत्तीसगढ़ में अपार संभावना हैं, मगर इस पर कोई ध्यान नहीं दे रहा।
नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में भी बाघ- बस्तर और सरगुजा संभाग के जंगलों में कभी वन विभाग दाखिल ही नहीं हुआ, क्योंकि ये नक्सल प्रभावित जंगल हैं। अगर गणना हो तो यहां बड़ी संख्या में बाघ मिल सकते हैं। बीते कुछ सालों में सरगुजा के जंगलों में बाघों का शिकार होना पाया गया है।
शुरू नहीं हो पाया बाघों की गणना का चौथा चरण- केंद्र सरकार के निर्देशानुसार राज्य में बाघों की गणना का चौथा चरण (फेज फोर) 15 अक्टूबर से शुरू हो जाना था,जो अब तक हुआ ही नहीं है। जबकि विभाग को बजट भी मिल चुका है। गौरतलब है कि ठंड और गर्मी में ही बाघ की गणना मुमकिन होती है। ठंड के तीन महीने तो बगैर किसी गणना के बीत चुके हैं। केंद्र को 15 मई तक रिपोर्ट भेजी जानी है। सूत्रों के मुताबिक अफसर २६ जनवरी के बाद गणना शुरू करने की तैयारी में हैं।
हमारे प्रदेश में कितने बाघ हैं,इसका दावा तब तक नहीं किया जा सकता है जब तक की रेडियो कॉलरिंग नहीं हो जाती। इसके लिए केंद्र सरकार की अनुमति का इंतजार है। अतुल शुक्ला, प्रधान मुख्य वन संरक्षक, वन्यजीव, छत्तीसगढ़ा मध्यप्रदेश”