बच्चों ने ट्रेन देखी नहीं थी तो दिखाई शोले
बालीवुड में अच्छी पहचान बना चुके अभिनेता भगवान तिवारी ने कहा कि मैं एक ट्राइबल क्षेत्र से उठकर मुंबई में सेटल हुआ हूं। इसलिए मैं उन बच्चों की दिक्कत को समझता हूं जिनमें काबिलियत तो है लेकिन प्लेटफार्म नहीं मिल रहा है। मुंबई में रोजाना सीरियल या फिल्मों में एक्टिंग करना मेरे लिए नया नहीं है। मेरे लिए नई चीज वह है जब ट्राइबल इलाकों के बच्चों के लिए कुछ कर पाऊं। उन्होंने बताया कि करीब तीन साल पहले मुझे नारायणपुर से 150 किमी भीतर एक वर्कशॉप लगाने का मौका मिला। जब मैंने बच्चों से कहा कि ट्रेन बन जाओ तो वे मुझे देखने लगे। मैंने उन बच्चों को शोले दिखाई तब वे समझे कि टे्रन क्या होती है। मैंने रेलवे विभाग को पत्र लिखकर आग्रह किया कि इन बच्चों को रेलगाड़ी में बिठाया जाए। तिवारी ने कहा कि मैं टीवी देखकर जब बालीवुड तक पहुंच सकता हूं तो आज के बच्चे क्यों नहीं?
मुंबई में वही काम आया, जो मैंने छत्तीसगढ़ में रहकर सीखा था, थियेटर से मिला फायदा
भिलाई निवासी मुंबई के एक्टर व प्रोड्यूसर पंकज सुधीर मिश्रा ने कहा मेरा बैकग्राउंड डॉक्युमेंट्री रहा है। जब मैं मुंबई गया तो वहां वही काम आया जो छत्तीसगढ़ में सीखा था। मुंबई में जाकर आप क्रिएशन भले कर सकते हैं लेकिन जो आपने सीखा है उसकी प्रैक्टिस करते हैं। मुझे पहली बार किसी सीरिलय या फिल्म को डायरेक्ट करने इसलिए ही बोला गया कि मैंने यहां सीखा था। मुंबई में मुझे नॉन फिक्शन पर काम करने कहा गया, जो कि उन दिनों बूम कर रहा था। मुझे कॉमेडी को बीट करने कहा गया। मैंने कहा, कॉमेडी को बीट तो नहीं, लेकिन कुछ नया जरूर कर सकता हूं। इस काम के लिए मेरा थियेटर काम आया। अक्सर लोग बड़े शहर की ओर इसलिए जाते हैं कि कुछ सीखने मिलेगा, मेरा मानना ये है कि ये आगे बढऩे के लिए ठीक है, लेकिन सीखने के लिए नहीं। उन्होंने कहा कि छत्तीसगढ़ में इंस्प्रेशन रीजनालिटी है, देखी हुई फिल्म पर फिल्म बनाने की कोशिश।
‘अब मौत को मार दूंगा’ का लिया संकल्प और एवरेस्ट पर लहराया तिरंगा, अगला मिशन माउंट विनसन
मई में एवरेस्ट क्लेंब करने वाले राहुल गुप्ता ने बताया कि आप हर वह चीज हासिल कर सकते हो जिसके लिए आपमें जुनून हो। उन्होंने कहा कि वर्ष 2015 से मैंने एवरेस्ट पर चढ़ाई का प्रयास किया। नेपाल में भूंकप के कारण वह कैंसल हो गया। अगले साल 2016 में फिर ट्राई किया। उस वक्त मुझे लगता था कि मुझसे नहीं हो पाएगा। इसी वजह से मैं चढ़ाई पूरी नहीं कर पाया। इसके बाद मैंने तय किया कि अब मौत को मार दूंगा। मैंने एक साल तक तैयारी की जिसमें मेंटली, योगा, आध्यात्म, साइकोलॉजिकल और प्लानिंग शामिल थी। 2018 में 22 लोगों का लीडर बनकर चढ़ाई की। एक समय एेसा भी आया था कि स्नो ब्लाइंडनेस हो गया था। जिसमें तूफान में दिखाई देना बंद हो जाता था। टाइम पर इलाज नहीं हुआ तो आंख खराब होने की आशंका रहती है। इसके साथ ही गाल पर फ्रोस बाइट हो गया था। यानि त्वचा गलने लगती है। चूंकि मैं संकल्प लेकर गया था कि मौत को मार दूंगा, इस तरह मैं सक्सेस रहा। मेरा अगला मिशन अंटार्टिका का माउंट विनसन और साउथ पोल रहेगा।
छोटी-छोटी बहादुरी दिखाएं, जरूर आएगा बदलाव
नगर निगम के कमिश्नर रजत बंसल ने कहा कि छोटी-छोटी चीजों से आप ब्रेवरी दिखा सकते हैं। कचरा न फैलाना, सिग्नल में खड़े रहना इसके बावजूद कि पीेछे वाले लगातार हॉर्न बजा रहे हों कि तीन सेकंड की तो बात है, ये भी एक तरह से बहादुरी है। बंसल ने बताया कि किसी भी प्लान में सक्सेस के लिए लोगों की भागीदारी बहुत जरूरी है। हमें वेस्ट मैनेजमेंट और ओडीएफ में सफलता पब्लिक के इन्वॉल्वमेंट से ही मिली है। एक सवाल के जवाब में बंसल ने कहा कि लाइफ में टाइम को नहीं, बल्कि प्रायोरिटी को मैनेज करो। बंच ऑफ फूल के सचिन ने स्वच्छता मिशन की सफलता पर किस्सागोई सुनाई।
पहली रंगोली 5 रुपिया मं बनाय रेहेंव, अब लेथंव डेढ़ लाख
रंगोली आर्टिस्ट ने छत्तीसगढ़ी में अपनी बात रखी। उन्होंने कहा, छत्तसीगढ़ी संस्कृति ल बचाय बर हमन ल ऐला जीये ल परही। मोर कना अइसन फार्मूला हे तेमे 50 करोड़ खरचा करके 100 बछर तक हमर संस्कृति ल जिंदा रख सकत हन। प्रमोद ने कक्षा चौथी से रंगोली बनाना शुरू किया और अब तक कई नेशनल व इंटरनेशनल अवॉर्ड हासिल कर चुके हैं। उन्होंने बताया, जब में कक्षा चौथी म रेहेंव त रंगोली बनाय ल सुरू करेंव। मोला कई झन कहे के ये काम त टूरीमन करथें। फेर मोला लागथे कि कला के कोई जेंडर नइ होवय। मोर पहली रंगोली 5 रुपिया म बने रिहिस, अब मेहा डेढ़ लाख तक लेथंव।
अच्छे काम करने के लिए एनजीओ जरूरी नहीं
दिव्यांगों के हित के लिए कानूनी जागरुकता व पहल एनजीओ से जुड़े एडवोकेट सौरभ चौधरी ने कहा कि कोई अच्छा काम करने के लिए जरूरी नहीं कि आप किसी एनजीओ से जुड़ें। आप अपने स्तर पर भी बहुत कुछ कर सकते हैं। डिसएबल लोगों के लिए नि:शक्तजन और विकलांग शब्द को किताबों पर बैन करने के लिए हमने सिंपल तरीके से देशभर के पब्लिशर को पत्र भेजे। उनके जवाब भी आने लगे हैं। हम दिव्यांग लोगों के लिए नि:शुल्क कानूनी सलाह दिलाने में मदद कर रहे हैं। स्टेट प्लानिंग कमीशन में मुझे जगह दी गई है, इससे हमारी जिम्मेदारी और भी बढ़ जाती है। उन्होंने बताया कि जब कॉमर्स की पढ़ाई कर रहे थे, तब टीचर ने पूछा कि कितने लोग सीए बनना चाहते हैं। 50 में 48 लोगों ने हाथ खड़े किया। तब मैंने तय किया कि मुझे भीड़ में शामिल नहीं होना है। लॉ की तरफ रुझान था, इसलिए उसकी पढ़ाई की। एक सवाल के जवाब में उन्होंने बताया कि जुडिशयल पूरी तरह स्वतंत्र है। हालांकि राजनीतिक कारणों से उसका मिसयूज होता है, लेकिन यह सब जगह चल रहा है। इसके लिए अवेयरनेस की जरूरत है।
जमा-जमाया काम छोड़ा, यूथ को टूरिज्म से कर रहे कनेक्ट
जीत सिंह ने बताया कि नौकरी करते हुए वे लगभग पूरा देश घूम चुके थे। फिर लगा कि बहुत हो चुका अब वह करना चाहिए जो दिल चाहता है। देशभर में घूमने के बाद लगभग हर जगह की दिक्कतों से वाकिफ हो चुका था। मैंने तय किया कि यूथ को पर्यटन से कनेक्ट कर टूरिज्म को बढ़ावा दिया जाए। बस्तर में हमने इस चीज को चैनलाइज किया। उनकी बनाई चीजों की इस तरह से ब्रांडिंग की कि उन्हें अच्छा दाम मिल सके। इसे थोड़ा कमर्शियल किए जाने की जरूरत है लेकिन पूरा अधिकार उनके हाथ ही में होना चाहिए। अगर आंकड़ों पर नजर डालें तो ढाई-तीन साल पहले तक एक लाख पर्यटक आते थे, लेकिन अब यह संख्या ढाई लाख तक पहुंच चुकी है। हम बस्तर में ऐसी एक्टिविटीज कराते हैं जिससे वहां का टूरिज्म प्रमोट हो सके।
प्रॉब्लम नहीं, सॉलुशन पर सोचें
उत्कर्ष गर्ग ने कहा, सक्सेस के लिए प्रॉब्लम के बारे में नहीं, सॉलुशन के बारे में सोचने की जरूरत है। एनआइटी में पढ़ाई के दौरान जब समस्या आई तो मैंने पोएट्री लिखी। उस दौर में मैं अपनी बात ढंग से कह नहीं पाता था। कॉन्फिडेंट कम था। लेकिन जब लगा कि मेरी कविताओं से लोगों पर असर हुआ है तब मैंने अर्ज किया है फेसबुक पेज बनाया। यहां दिक्कत ये आई कि अच्छे लोग नहीं मिल रहे थे। हमने टैडेक्स इवेंट कराया। यहां यूथ को ट्रेंड किया। इस तरह अच्छे राइटर मिलने लगे।