जॉब और रिश्तों पर असर
जयेश ने बताया कि एडिक्शन में स्टूडेंट्स ही नहीं बल्कि युवा भी शामिल हैं। इसके चलते ऑफिस में कार्यक्षमता 26 प्रतिशत तक कम हो गई है। घरों में साथ समय बिताना कम हो गया है। इस वजह से रिश्तों पर असर पड़ा है। एग्जाम की तैयारी शुरू हो चुकी है। पैरेंट्स को फिक्र है कि लाख मना करने के बाद भी बच्चे सोशल मीडिया से पिंड नहीं छुड पा रहे हैं।जेल भेजना मतलब कुछ समय के लिए ब्लॉक करना
ऐप के जरिए कोर्ट रूम में यह पता चलता है कि आप किसी ऐप को कितना यूज कर रहे हैं। किस-किस वक्त उपयोग कर रहे हैं। इससे तय किया जा सकता है कि किस टाइम कितने घंटे के लिए उस ऐप को बंद किया जाए जिसमें टाइम ज्यादा स्पेंड हो रहा है।रिवॉर्ड में मिलता है क्वाइन
मेंटर जवाहर सूरिसेट्टी ने बताया कि अगर आप ऐप के मुताबिक चलते हैं तो आपको बतौर रिवॉड्र क्वाइंस मिलते हैं। यह क्वाइंस आपको जरूरत के वक्त वाट्सऐप, फेसबुक, इंस्टाग्राम, ट्वीटर या जो भी प्लेटफॉर्म आपने चुना हो, उसे यूज करने के लिए निश्चित मिनट अवलेबल कराते हैं। ऐप को यूज करने से हैबिट बनती जाती है और लत ऑटोमेटिक छूटती जाती है।ऑनलाइन दिखने का ट्रेंड
जागृत ने कहा कि इन दिनों 24 घंटे ऑनलाइन दिखने का ट्रेंड है। ऐसे में 10 मिनट के लिए भी कोई आपका मोबाइल ले ले तो बेचैनी महसूस होने लगती है। जाहिर है आप सोशल मीडिया एडिक्शन की जद में हैं। खासतौर पर टीनेज के लिए यह बड़ी समस्या है। क्योंकि एग्जाम का दौर शुरू होने को है। वे चाहकर भी मोबाइल से दूरी नहीं बना पाते, हालांकि टॉपर किस्म के छात्र तो पहले ही सोशल मीडिया को तिलांजलि दे चुके होते हैं, लेकिन एवरेज और इससे थोड़ा ज्यादा के बच्चे मोबाइल की गिरफ्त से बाहर नहीं निकल पाते। इससे सेहत पर असर तो पड़ता है जिंदगी अव्यवस्थित हो जाती है। इसे तैयार करने में करीब सालभर का वक्त लगा।