केस-1 : दो राज्यों के अफसरों की बहानेबाजी
दुबराजीन बाई जांजगीर-चांपा के ग्राम खेमड़ा की रहने वाली है। घर की माली हालत खराब होने की वजह से दुबराजीन का पति अर्जुन सिदार हरियाणा राज्य में कमाने-खाने गया हुआ था। वर्ष 2016 में सोनीपत इलाके में मेहनत मजूरी के दौरान अर्जुन को एक जहरीले सर्प ने डस लिया। अर्जुन को एक सरकारी अस्पताल में दाखिल किया गया जहां इलाज के दौरान उसकी मौत हो गई।
दुबराजीन बाई ने अपने पति की मौत के बाद तमाम सरकारी दस्तावेजों को एकत्र कर हरियाणा सरकार से पत्र व्यवहार किया, लेकिन वहां के अफसरों ने पूरा मामला यह कहकर लौटा दिया कि सांप हरियाणा का है, लेकिन जिसकी मौत हुई है, वह छत्तीसगढ़ का रहवासी है। सरकारी पत्र-व्यवहार से परेशान दुबराजीन बाई ने अब जाकर छत्तीसगढ़ के राज्यपाल से गुहार लगाई है।
एक खत में दुबराजीन बाई ने लिखा है कि जब हम सभी भारतवासी एक हैं, तो उसके पति के साथ सरकार का यह व्यवहार समझ से परे है। दुबराजीन बाई ने जांजगीर-चांपा कलक्टर अन्य अफसरों को भी अपनी पीड़ा बताई है, लेकिन यहां के अफसर कह रहे हैं कि आपके पति को हरियाणा के सांप ने काटा है, इसलिए मुआवजा भी वहीं से मिलेगा।
केस-2 : मृत्यु का सत्यापित प्रमाण पत्र लाओ
जांजगीर-चांपा के ग्राम ओडेकेरा के रहवासी कर्मा राठिया ने मुख्य सचिव से मुआवजे के लिए गुहार लगाई है। मुख्य सचिव को लिखे खत में कर्मा ने कहा है कि 29 जून 2016 को उसकी मां इतवारिन बाई राठिया को एक जहरीले सांप ने काट लिया था। घटना के दिन ही इतवारिन बाई को रायगढ़ के सरकारी अस्पताल में दाखिल किया गया, लेकिन पूरे शरीर में अत्यधिक जहर फैल जाने की वजह से उनकी मौत हो गई। डॉक्टरों ने उन्हें बचाने का काफी प्रयास किया लेकिन वह जहर को निकालने में असफल रहे।
जहरीले सांप के काटने से मृत्यु होने की पुष्टि के बाद डभरा इलाके के अनुविभागीय अधिकारी ने चार लाख की आर्थिक सहायता राशि दिए जाने की अनुशंसा करते हुए कलक्टर कार्यालय को पत्र भेजा, लेकिन जांजगीर-चांपा के एक अपर कलक्टर ने यह कहकर मामला लौटा दिया कि मृत्यु का प्रमाण पत्र सत्यापित नहीं है। उन्होंने सत्यापित प्रमाण पत्र की मांग की। कर्मा ने कहा कि उसकी मां की मौत सर्पदंश से ही हुई है, लेकिन अपर कलक्टर किस तरह का सत्यापित प्रमाण पत्र चाहते हैं यह समझ से परे है।
केस- 3 : बिना कारण बताए आवेदन निरस्त
रायगढ़ जिले के ग्राम भेलवाटिकरा के ग्रामीण रामप्रसाद की कहानी भी मुआवजे के लिए दर-दर भटकने से जुड़ी है। रामप्रसाद की माता मालती सिदार 3 सितम्बर 2016 को खेत में धान की निंदाई करने गई हुई थी, इस दौरान एक जहरीले सांप के काटने की वजह से उसकी मौत हो गई।
तमाम तरह के सरकारी दस्तावेजों के आधार पर रामप्रसाद ने पटवारी, तहसील और कलक्टर कार्यालय के चक्कर लगाए। किसी ने रामप्रसाद को सलाह दी कि उसकी समस्या का समाधान रायगढ़ के अपर कलक्टर ही कर पाएंगे। रामप्रसाद ने अपर कलक्टर से मुलाकात की, लेकिन यहां भी उसे निराशा हाथ लगी। अब उसका प्रकरण बिना कोई कारण बताए निरस्त कर दिया गया है।
लोकसेवा गारंटी अधिनियम में यह प्रावधान है कि सांप काटने से मृत्यु प्रमाणित पाए जाने की स्थिति में 30 दिनों के भीतर ही मुआवजा दिया जाना है। अगर कोई अफसर हीला-हवाला कर रहा है, तो गलत है।
आजकल ग्रामीणों को मुआवजा देने-दिलाने के नाम पर कुछ कानून के जानकार भी सक्रिय हो गए हैं। मुख्य रुप से ये ग्रामीणों को मिलने वाली चार लाख की राशि में से बंटमारी का काम करते हैं। जरूरतमंदों को सही समय पर मुआवजा मिले यह आवश्यक है। कलक्टरों को इस पर निगरानी रखनी चाहिए।
पी.निहलानी, संयुक्त सचिव राजस्व एवं आपदा प्रबंधन विभाग, रायपुर