नुक्कड़ नाटक से पैरेंटस को जोड़ा ताकि वे बच्चों को स्कूल भेजें
पीएस तिल्दा बांस टाल प्राइमरी स्कूल की रश्मि किरण नायक ने अटेंडेंस को बढ़ाने के लिए पहल की। रश्मि ने बताया कि पैरेंट्स कई बार बच्चों को स्कूल इसलिए नहीं भेजते ताकि वे घर पर छोटे बच्चों की देखभाल करें या कुछ काम करे। रश्मि ने नुक्कड़ नाटक की टीम तैयार की और इसमें पैरेंट्स को ही इन्वॉल्व किया। इसमें बच्चों को पढ़ाई कराने पर फोकस किया गया है। जो माता-पिता इसमें शामिल हैं वे अपने बच्चों को तो स्कूल भेजते ही हैं बल्कि उन पैरेंट्स को जागरूक करते हैं जो बच्चों की पढ़ाई को लेकर गंभीर नहीं है।
कैरम सिखाता है अल्फाबेट
पंदी आरंग प्राइमरी स्कूल के शिक्षक उमेंद्र कुमार चंद्राकर तीसरी से पांचवीं तक गणित पढ़ाते हैं। उन्होंने कैरम को ऐसा डिजाइन करवाया कि बच्चों की रुचि भी बनी रहे और वे ए टू जैड को खेल-खेल में याद कर लें। जोडऩा भी सीख जाएं। चंद्राकर ने चलो संवारे अपनी शाला कॉन्सेप्ट तैयार किया जिसमें महिलाएं स्कूल का निरीक्षण करती हैं और पढ़ाई को लेकर पालकों को अवेयर करती हैं।
छलनी और गुब्बारे से साइंस को समझाया
हायर सेकंडरी स्कूल पचेड़ा, ब्लॉक आरंग की लेक्चरर लीना वर्मा ने कबाड़ से जुगाड़ कर साइंस को सरल तरीके से सीखाया। जैसे डिस्पोल बोतल में नीचे से छेद कर ओपनिंग में गुब्बारा लगाना। कांच के गिलास में पानी भरकर छलनी लगाने से भी पानी का न गिरना। इसके जरिए बच्चों को सरफेस टेंशन और एयर प्रेशर को सरल तरीके से प्रेक्टिल कर समझाया गया। लीना ने बताया कि गर्मी के दिनों में स्वस्फूर्त होकर बच्चों को सिखाते हैं। खासियत ये है कि जो चीजें इस्तेमाल में लाई जाती हैं वे पूरी कबाड़ के जुगाड़ की होती हैं। यानी पूरी तरह शून्य निवेश नवाचार। साथ की महिलाओं को ईमेल, प्लांटेशन की जानकारी दी जाती है।
कॉन्फिडेंट बढ़ाने के लिए राजा-प्रजा का खेल
नवीन प्राथमिक शाला धरसीवां की लक्ष्मी खुदश्याम बच्चों की हिचक दूर करने, सवाल पूछने की प्रवृत्ति को बढ़ावा देने, आत्मविश्वास और नेतृत्व क्षमता के विकास के लिए बच्चों के बीच राजा और प्रजा का खेल करती हैं। चिट के जरिए किसी एक बच्चे को राजा बना दिया जाता है। अलग-अलग विषय को लेकर सवाल-जवाब किए जाते हैं। कभी साइंस तो कभी अंग्रेजी या जीके। मकसद ये है कि बच्चे रोचक तरीके से खुद सवाल पूछें और उसके जवाब पाएं ताकि उन्हें यह लांग टाइम तक याद रहे।
विज्ञापन के रैपर से शब्द ज्ञान
विधानसभा से 10 किमी दूर तर्रा शासकीय प्राथमिक स्कूल के शिक्षक घनश्याम क्लास में अंग्रेजी के शब्दों को इजी में सिखाने का तरीका तलाश रहे थे। इसके लिए उन्होंने अंग्रेजी के टीचर्स से सलाह भी ली पर कुछ खास नहीं मिल पाया। उन्होंने सोचा कि हम किसी भी चीज को देखकर अच्छी तरह से समझ सकते हैं। घनश्याम ने टीवी पर आने वाले ऐसे विज्ञापनों की लिस्ट बनाई जिस प्रोडक्ट को ज्यादातर घरों में यूज किया जाता है। उन प्रोडक्ट के रैपर के जरिए अंग्रेजी के सिखाई जिससे बच्चे आसानी से वर्ड बोलना सीखते गए। इन रैपर में चॉकलेट-बिस्कुट की संख्या ज्यादा थी क्योंकि यही चीजें हर घर में पाई जाती हैं। घन्श्याम निलजा सारागांव के रहने वाले हैं।
नटखट टोली ने साइंस को किया सरल
5 महिला टीचर्स ने मिलकर धरसीवां ब्लॉक के गांवों में नटखट टोली चलाई। अब इसमें 12 टीसर्च हो गईं हैं। ग्रुप लीडर अचला मिश्रा ने बताया कि इसमें पहली से आठवीं तक के विज्ञान को प्रेक्टिल कर समझाया गया। जैसे कि नल से पानी कैसे आता है? हवा कैसे चलती है? इस तरह के सवाल को रोचक अंदाज में बच्चों को समझाते हैं। क्राफ्ट वर्क के साथ साइंस सिलेबस की पढ़ाई कराते हैं। शुरू-शुरू में स्कूल में रेस्पांस नहीं मिला लेकिन हमने इसे अवाइड किया और काम करते रहे। हिंदी के शब्दकोष बढ़ाने के लिए आसपास की चीजों का उदाहरण लेना जैसे काम हैं। नटखट टोली में रूबीना बेगम, शारदा हेराऊ, महिमा जोसेफ लीना वर्मा शामिल रहीं।