ऐसे आया आइडिया
सुमिता ने बताया कि वे आर्ट ऑफ लिविंग से जुड़ी हैं। संस्था के पवित्रा कार्यक्रम के तहत बीते 10 वर्षों से रुरल इलाकों में स्वच्छा को लेकर अवेयर कर रही हैं। इस दौरान ये बात सामने आई कि महिलाएं माहवारी के दौरान हाईजीन का ध्यान नहीं देती। सुमिता ने इस पर रिसर्च किया तो पाया कि वल्र्ड में होने वाली मौतों का एक चौथाई सर्वाइकल कैंसर है और यह बीमारी पीरियड के दौरान अनहाइजेनिक इस्तेमाल से होती है।पैरे में यह खासियत
वैसे तो पैरा जलने पर प्रदूषण का बड़ा कारण बनता है जिसका उदाहरण हम दिल्ली-एनसीआर में देख रहे हैं। इससे मिट्टी को भी नुकसान हो रहा है। सुमिता के रिसर्च की मानें तो पैरे में 30 से 45 प्रतिशत सैलिलुज होता है जिसे हम फाइबर भी बोल सकते हैं। यही फाइबर पैड बनाने के लिए काम आता है। पूरी तरह हाइजीन भी। फिजिकल और केमिकल प्रक्रियाओं से गुजरकर यह कंफर्टेबल नेपकिन बनता है।