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63 की उम्र लेकिन जोश जवानों सा, देश-विदेश में कर चुके हैं बिना सीट की साइकिल से यात्रा

locationरायपुरPublished: Mar 04, 2020 01:21:56 am

Submitted by:

Tabir Hussain

इंटरनेशनल साइक्लिस्ट हीरालाल यादव पहुंचे रायपुर

63 की उम्र लेकिन जोश जवानों सा, देश-विदेश में कर चुके हैं बिना सीट की साइकिल से यात्रा

कुशाभाउ ठाकरे यूनिवर्सिटी में हीरालाल यादव ने छात्रों को मोटिवेट किया। उन्होंने कल्पना चावला का संदेश उनके पिता के जरिए छात्रों को सुनाया।

ताबीर हुसैन @ रायपुर। साइकिल में ग्रीन कलर के गेटअप में दिखाई दे रहे शख्स की उम्र पर मत जाइए। ये भले ही 63 साल के हैं लेकिन जोश में जवानों को भी मात दे रहे हैं। जरा सोचिए, आपने कभी बिना सीट की साइकिल चलाई है? इस इंसान ने हजारों किमी की यात्रा खड़े-खड़े पूरी की है। आखिर क्यों? बस एक संकल्प। नशामुक्त समाज। हीरालाल यादव छोटा-मोटा व्यवसाय करते थे। सिगरेट उनकी लत बन गया था। उन्हें देखकर उनका छोटा बेटा भी सिगरेट पीने लगा। यह बात उन्हें नागवार गुजरी लेकिन वे उसे कैसे टोकते? चूंकि वे तो खुद इसी नशे के शिकार थे। ऐसे में उनके पास एकमात्र रास्ता था कि पहले खुद सिगरेट छोड़ो उसके बाद दूसरों को अवेयर करो। जब वे लोगों के बीच पहुंचे तो उन्हें निराशा हुई। कोई बीड़ी-सिगरेट का आदी व्यक्ति कहने लगा कि हमसे न हो पाएगा। हीरालाल ने इसके लिए एक तरीका निकाला। वे बिना सीट साइकिलिंग की प्रैक्टिस करने लगे। तीन महीने खड़े होकर साइकिलिंग के अभ्यास के बाद वे निकल पड़े यात्रा पर। चारों महानगरों की यात्रा 103 दिनों में पूरी की। 1998 से लेकर 2015 तक छोटी-बड़ी 14 यात्राएं की। वे कुशाभाऊ ठाकरे यूनिवर्सिटी के छात्रों को मोटिवेट करने पहुंचे। इस दौरान पत्रिका से अपनी जर्नी शेयर की।

5 बार स्लिपडिस्क होने पर डॉक्टरों ने मना किया

बिना सीट की साइकिलिंग के चलते 5 बार स्लिपडिस्क शिकार होना पड़ा। डॉक्टरों ने साइकिल छूने से ही मना कर दिया। यह बात वर्ष 2015 की है। तबसे वे मोटिवेशनल क्लास लेने लगे। अब तक करीब 2000 लैक्टर स्कूल-कॉलेज, सैनिक स्कूल, जेल में दे चुके हैं।

इन देशों की यात्राएं

म्यामार और जापाान में सांकेतिक यात्राएं की। इससे पहले लाओत्स, वियतनाम, कंबोडिया में यात्राएं कर चुके हैं। अपनी साइकिल में वे दो गमले रखते थे जिससे कि पर्यावरण संरक्षण का मैसेज भी दे सकें।

ऐसे हुई थी शुरुआत

हीरा बताते हैं कि सन् 97 में आजादी की स्वर्ण जयंती पर मैंने सेलिब्रेशन के तौर पर मुंबई से दिल्ली, वाघा बॉर्डर से जम्मू होते हुए कोलकाता की साइकिल यात्रा की थी। दूसरी यात्रा की कोई प्लानिंग नहीं थी। जब बेटे को नशे की गिरफ्त में जाते देखा तो लाइफ में टर्निंग प्वाइंट आ गया और मैंने बिना सीट के साइकिलिंग शुरू की। अब चूंकि डॉक्टर मना कर चुके हैं तो कभी-कभी बेल्ट बांधकर गेयर वाली साइकिल जरूर चला लेता हूं।
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