लिया संकल्प और हजारों को सिखाया योग
योग गुरु मधुबहादुर सिंह ने जबसे होश संभाला बीमारियों से घिरी रहीं। ओवरवेट भी बड़ी समस्या थी। बिना दवा के दिन नहीं गुजरता था। टीवी पर योग के बारे में देखा। शहर के सिविल लाइन में सत्यदर्शन योग आश्रम था। यहां तीन साल तक योग किया। धीरे-धीरे गोलियां कम की। बतौर प्रयोग एक महीने तक दवाइयां बंद की। इसके बाद हमेशा के लिए मेडिसीन से छुटकारा मिल गया। मधु ने संकल्प लिया कि जिस योग ने उसकी जिंदगी खुशहाल हुई है, कम से कम १०० लोगों को योग सिखाएंगी। हरिद्वार से विशेष ट्रेनिंग लेकर आईं और शुरुआत दो लोगों से की। संख्या बढ़ती गई। घर छोटा पडऩे लगा। दो बैच में ट्रेनिंग दी। रजिस्टर भी मेंटेन किया। जिसमें योग से पहले और बाद के अनुभव को प्रशिक्षण लेने वाले लिखा करते। राजभवन में तत्कालीन राज्यपाल केएम सेठ की फैमिली को योगाभ्यास कराया। अभी शहर के12 स्थानों में सुबह और शाम नि:शुल्क क्लासेस चल रही हैं। कुछेक जगहों पर मधु व अन्य स्थानों पर इनके शिष्य योग शिक्षा दे रहे हैं। इस काम के चलते कई अवॉर्ड मिल चुके हैं। वर्ष 2005 से अब तक मधु ने 100 शिविर लगाकर करीब 10 हजार लोगों को योगाभ्यास कराया है। उन्हें इस काम के लिए मुख्यमंत्री सम्मानित कर चुके हैं। किरण बेदी ने नारी शक्ति सम्मान से नवाजा। संघर्षशील महिला अवॉर्ड भी मिला। वक्ता मंच, जैन समाज, सिंधी पंचायत लाखे नगर, रोटरी क्लब ऑफ रायपुर ग्रेटर, छग योग आयोग ने भी सम्मानित किया है। वे कहती हैं कि लंबे समय से बीमारी से ग्रस्त लोग जब अच्छे हो जाते हैं तो उनके आंखों की चमक ही मेरा प्रसाद है।
इन्होंने जेल में कराई योग की शुरुआत
वर्ष 2000 में जेल डिप्टी सुप्रीडेंटेट फैक्ट्री सुभाष वर्मा ने आर्ट ऑफ लिविंग का बेसिक कोर्स किया। मानसिक और शारीरिक तौर पर खुद में बदलाव देखकर इसे जेल में शुरू करने के लिए जेल उपमहानिरीक्षक डॉ केके गुप्ता के सामने अपनी बात रखी। उन्होंने इसे सहर्ष स्वीकार किया और बंदियों को 2001 से बेसिक ट्रेनिंग दी जाने लगी। शुरू-शुरू में तो बंदी समझ नहीं पाए। 20 से 30 बंदियों ने ही इसमें रुचि दिखाई लेकिन जब उन्हें फायदा हुआ तो बाकी भी इंटरेस्ट लेने लगे। सुदर्शन क्रिया सीखाई। जो बंदी अक्सर तनाव में रहा करते थे। उन्हें राहत मिली। हमने एडवांस्ड मेडिटेशन कोर्स भी कराया। वे रेगुलर योगासन करने लगे। चार दिन तक एक बैरक में रहकर। मेडिटेशन करवाया। इसमें मौन रहकर योग की एक्सराइज करनी होती थी। हर गुरुवार को सुबह आठ से 9 फालोअप होता है। अभी तक सेंट्रल जेल के ढाई से पौने तीन हजार बंदियों ने योगा का लाभ लिया है। 21 जून को भी करीब 800 बंदी योगा करेंगे। पिछले साल श्रीश्री रविशंकर आए थे। उन्होंने वर्मा का सम्मान किया।
वीलचेयर पर आ गई थी जिंदगी, अब बनीं योगा इंस्ट्रक्टर
डीडीयू की मंजू झा बताती हैं कि उनकी शादी बारहवीं के बाद हो गई थी। इसी टाइम से उन्होंने योगा करना शुरू कर दिया। हालांकि इसका नॉलेज नहीं था फिर भी किया करती थीं। एक बार उनकी कमर की नस ब्लॉक हो गई थी। डॉक्टर ने बताया कि ऑपरेशन करना पड़ेगा जिसकी वजह से उम्रभर व्हील चेयर पर रहना पड़ेगा। इस बात को सुनकर वे डरी नहीं बल्कि धीरे-धीरे योग करना शुरू किया। तीन महीने के भीतर फायदा नजर आने लगा और वे चलने-फिरने लगीं। कई लोग मानते हैं कि शादी के बाद जिंदगी रुक जाती हैं, लेकिन मंजू झा उन लोगों के लिए मिसाल हैं। शादी के 15 साल बाद उन्होंने योगा में पीजी किया और एमए में गोल्ड हासिल किया। इसके बाद में एमफिल की। 2010 में उन्होंने रविवि में गेस्ट फेकल्टी के रूप में योगा असिसटेंट प्रोफेसर के रूप में काम किया और पिछले दो सालों से वे एनआइटी में योगा इंस्ट्रक्टर हैं। आज सैकड़ों लोगों को योग का गुर सीखा रही हैं। उनका मानना है कि योग ने मुझे नई जिंदगी दी है। मैं इस विधा का नॉलेज दूसरों को दूंगी।