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मनखे के जिनगी म हे किसम-किसम के समसिया

locationरायपुरPublished: May 23, 2022 04:55:22 pm

Submitted by:

Gulal Verma

सबो मनखे हर दिन कुछु नवा सोच के खुसी-खुसी अपन दिन के सुरुआत करे बर चाहथें। हर कोई लक्छ पाय के सपना देखथें। पहिली ले अउ जादा बने, नाम कमाय, पइसा कमाय, सुविधा जुटाय, सुफल होय बर चाहथे। फेर, असल जिनगी म ये सब ह अतेक असानी से नइ होय पावय।

मनखे के जिनगी म हे किसम-किसम के समसिया

मनखे के जिनगी म हे किसम-किसम के समसिया

मितान! हर मनखे के अपन नजरिया अउ सोच होथे। ऐहा सबो मनखे बर सच हे। घर-परिवार के लोगनमन के तउर-तरीके ह तकरीबन एक जइसे होथे। वोमन कतकोन पइत एक-दूसर के मामला म, काम-बुता म टोकाटाकी करथें। याने हमर तीर के सगा-संबंधीमन हमर ‘सीमा रेखा’ म खुसर सकत हें। जादा टोकाटाकी करे ले मनखे परेसान हो सकत हे। तब मनखे टोकइयामन ले दूरिहा रहे बर धर लेथे। धीरे-धीरे ये फासला ह बाढ़त जाथे। कतकोन पइत दूनों के बीच के रिस्ता ह टूट जथे। ऐकरे सेती कईझन दाई-ददा ले लइकामन ह अलग-बिलग घलो हो जथें। परिवार टूट जथे। अइसने मनमुटाव के सेती घरवाला-घरवाली (पति-पत्नी) के जोड़ी घलो टूट सकत हे।
सिरतोन! कोनो मनखे ह अकेल्ला रहे बर चाहत हे। कोनो मनखे से बात नइ करे बर चाहत हे। अपन घर म नइ आन दे चाहत हे। अपन जिनिस ल नइ देय बर चाहत हे। त ऐहा वोकर अधिकार होय बर चाही। दूसर ल वोकर मामला म टोकाटाकी नइ करे बर चाही। जइसे आपमन छोटे लइकामन ल देखे होहू जउन ह अपन कोनो संगवारी के फोन आथे त फोन ल लेके दूसर कुरिया म चल देथे। अइसन वोहा अपन निजता-गोपनीयत के रक्छा करथे। वइसने हम सबोमन घलो करथन। फेर, ऐकर हमन ल एहसास नइ होवय। सधारन बात हे, सबो मनखे अपन बर गोपनीयता चाहथें। त फेर दूसरमन ल घलो छूट देय बर चाही।
मितान! सबो मनखे हर दिन कुछु नवा सोच के खुसी-खुसी अपन दिन के सुरुआत करे बर चाहथें। हर कोई लक्छ पाय के सपना देखथें। पहिली ले अउ जादा बने, नाम कमाय, पइसा कमाय, सुविधा जुटाय, सुफल होय बर चाहथे। फेर, असल जिनगी म ये सब ह अतेक असानी से नइ होय पावय। जब कभु हमन कुछु नवा काम करे बर सुरू करथन त कुछु न कुछ बाधा, कठिनाई हमर आगू म समसिया बन के खड़े हो जथे। अइसन म सबो किसम के समसिया ल दूरिहाय के इही तरीका हे कि अपन हिम्मत झन हारव।
सिरतोन! बुद्धिमान मनखेमन कहिथें कि एक सुग्घर अउ ममहावत फूल ल पाय बर हे त वोमा लगे कांटामन से घलो जूझे बर परथे। अइसने हमर जिनगी म घेरी-बेरी नवा-नवा समस्या, परेसानी आवत रहिथे। फेर, हमन ल ए बात ल सुरता रखे बर चाही कि दुनिया म कोनो भी अइसन तारा नइये, जेकर कुची नइ बने हो। कुची गंवा जथे त वो तारा ल खोले बर दूसर कुची बन जथे। बिद्वानमन तो इहां तक कहिथें के कभु सरलग मिलत नाकामी, असफलतामन से निरास-हतास नइ होय बर चाही। काबर के कभु-कभु गुच्छा के आखिरी कुची ह घलो तारा खेल देथे।
जब हमर तरक्की के रद्दा म कोनो किसम के अड़चन आथे त हमर मन म इही खिलाय आथे के हमरेसंग अइसन काबर होथे। ये दुनिया म जेकर कना पइसे हे अउ जेकर कना पइसा नइये, ये दूनों किसम के मनखे जादा परेसान रहिथें। दुनिया हे त समसिया घलो ले, त अउ का-कहिबे।
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