संयम लगता था बंधन जैसा
हुकुमचंद ने वर्ष 2007 में आचार्य सुनील सागर से दीक्षा लिया था। इसके बाद हुकुमचंद से मुनि मुदित सागर बन गए थे और उनके साथ संयमित जीवन जीने लगे। गुजरात के जूनागढ़ में गिरनार वंदना के लिए आचार्य सुनील महाराज के साथ गए थे। इसके बाद से उनके सानिध्य में ही रह रहे थे। कुछ दिन पहले उन्हें सांसारिक जीवन के प्रति मोह जाग गया और संयम और वैराग्य का जीवन छोड़कर सामान्य जीवन जीने लौटने का निर्णय लिया। इसके बाद 23 जनवरी को बिना सूचना दिए आश्रम से निकल गए थे। उन्होंने पुलिस को बताया कि संयमित जीवन उन्हें बंधन जैसा महसूस हो रहा था। इस कारण उन्होंने इसे त्यागने का निर्णय लिया।गलत कदम के लिए माफी मांगी
मुनि मुदित इस प्रकार जूनागढ़ के आश्रम को छोडऩा गलत मानते हैं। उन्होंने इस बात के लिए आचार्य सुनील महाराज से अपने इस कदम के लिए माफी मांगी है। उन्होंने कहा कि उन्हें प्रशासन, समाज या परिवार से किसी प्रकार की कोई शिकायत नहीं है। यह मार्ग उन्होंने अपने मन से उठाया है।