जैतखाम स्तंभी की सबसे खास बात यह है कि यह मीनर दिल्ली के कुतुबमीनर से भी ज्यादा ऊंचा है। गिरौधपुरी पहुंचने से पहले ही यह स्तंभ दूर से दिखने लगता है। सफेद रंग से बने इस स्तंभ की बनावट इतनी अच्छी है कि इसे देखते ही लोगों का मन प्रसन्न हो जाता है। शाम को इस जगह का नजारा देखते लायक होता है।
जैतखाम की छत पर जाने के लिए दो तरफ से दरवाजे बनाए गए हैं और दोनों तरफ 435-435 सीढिय़ां हैं। गिरौधपुरी सतनामी समाज के लोगों का धार्मिक स्थल है। जैतखाम को बनाने के लिए सात खंभों का इस्तेामाल किया गया है। इसके अंदर एक विशाल हॉल है। जैतखाम गुरू घासीदास मंदिर से कुछ ही दूरी पर स्थित है। देशभर से लाखो सैलानी हर साल यहां आते रहते हैं।
गिरौदपुरी जैतखाम का डिजाइन वास्तुकला का बेजोड़ नमूना है। यह एक विशाल स्थान है इसकी छत तक पहुंचने के लिए 2 द्वार बनाए गए हैंं। प्रत्येक द्वार पर छत तक जाने के लिए 435 सीढ़ियां बनाई गई हैै।
इस दोनों सीढ़ियों की विशेष बात यह है कि इन ये दोनों अलग अलग है लेकिन इन सीढ़ियों के अलग अलग होने के बावजूद यह दोनों एक दूसरे के ऊपर दिखाई देते हैं। इन सीढ़ियों के एक साथ दिखने के बावजूद भी इन सीढ़ियों पर लोगों का मिलन ऊपर छत पर ही संभव हो पाता है।