बात कोनो भी किसम से पइसा कमाय के!
जब बड़े साहेब ह मना कर दिस त मेहा कइसे मान लंव के तेहा बदमास अस। इही तो मुसकुल हावय साहेब! पुलिस ह जब तक बदमास नइ मानंय, लोगनमन डररांवय तको नइ। दू बछर से लगे हंव। हर पइत उम्मीद करथंव के ये पइत बदमासमन के सूची म मोरो नाव आही। फेर, नइ आवय!
रायपुर
Published: August 01, 2022 04:38:22 pm
आजकाल के लइकामन तो सियानमन के बात नइ मानंय। समझाथें त उल्टा जुबाव देथें। तेकर सेती सियानमन समझाय बर छोड़त हें। ‘जइसे करहीं- वइसे भरहीं, धोखा खाहीं- तभेच चेतहीं।’ ऐहा कोने एक घर-परिवार के बाद नोहय, बल्कि सबो परिवार, समाज अउ सरकार के इही हाल हे।
मितान! आजकल के जमाना म सिधवामन के पूछइया नइये। जादाझन लोगनमन सोचथे के सिधवामन ह तो सिधवेच रइहीं। वोहा कभु नइ बदलय। वोकर बदले के कुछु उम्मीद नइ दिखय। अइसन भला मनखे के कोनो भला का बिगाड़ सकत हे!
सिरतोन! कुछु बने के उम्मीद अउ कांही होय के संभावना तो बिगड़े लइका अउ बदमास मनखे म रहिथे। बिगड़े लइका ह सुधर सकथे, बदमास मनखे ह सिधवा बन सकथे। घर- परिवार, गांव-सहर, समाज- देस म किसम-किसम आदत-बेवहार के मनखे मिलथें। एकझन बदमास मनखे के किस्सा अइसन हे।
बदमास हंव साहेब! लालू भइया से पूछ ले। परनदिन तीनझन ल मेहा अब्बड़ मारे-पीटे हंव। थाना म रपट हे। नइये साहेब। अतेक मारे हंव के वोमन रपट लिखाय के लइक नइ रिहिन। नइ रिहिन। वाह! थाना म तारा लगवाबे का? लजलहजा करत हस साहेब। फेर, तोला कभु थाना म नइ देखे हंव। हिस्सा देय बर नइ आवत का? साहेब मेहा अभी अइसन कुछु नइ करेंव अंव के हिस्सा देय बर परय। बड़े साहेब से दू-तीन पइत हाथ जोड़े रहेंव के कुछु रकम तय कर दे, फेर वोहा कहिस- अभी कुछ दिन रुक अउ हाथ के सफई देखा।
जब बड़े साहेब ह मना कर दिस त मेहा कइसे मान लंव के तेहा बदमास अस। इही तो मुसकुल हावय साहेब! पुलिस ह जब तक बदमास नइ मानंय, लोगनमन डररांव तको नइ। दू बछर से लगे हंव। हर पइत उम्मीद करथंव के ये पइत बदमासमन के सूची म मोरो नाव आही। फेर, पता नइ, काबर नइ आवय!
बेटा, पुलिसवाले बनई आसान हे, बदमास बनई मुसकुल हे। साहेब, त कोनो रद्दा बता दे। कुछु गुरुमंतर दे-दे। मोर हाथ म होतिस त अभिच्चे बदमास बना देतेंव, फेर मामला ह ऊपर के हे। फेर, एक-एक इलाके म बीस-बीस झन लोगनमन बदमास बने के जुगाड़ म हें। कोन-कोन ल पकडं़व। कुछु तो करव! सिरिफ एक पइत लोगनमन के नजर म आ जांव, त जिनगी बन जही। आपमन तो जानतेच हव के पुलिस तो कभु-कभार पारा-मोहल्ला म आथे, हमर जइसे बदमासमन ल इलाका ल संभाले बर परथे। तेन तारीख तय करहू, उही दिन आपमन के हिस्सा पहुंच जही।
ठीक हे, अइसने करबे! काली छापा परही। तेहा अइसने भागबे। उहें तोला पकड़ लूहूं। दसझन बदमास पकड़े के टारगेट हे। तोला घलो खुसेर दूहूं। बस, साहेब एक पइत गुंडा बनवा दव, थाना ले जादा कमई देहूं आपमन ल।
मितान! का सिरतोन म अइसन होथे? मंय नइ जानंव मितान! मेहा तो आपमन ल सुने-सुनाय एकठिन कहिनी-किस्सा सुनाय हंव? अइसन गोठिताव दूनों मितान अपन-अपन काम-बूता म चलदिन। जब ‘बाप बड़े ना भइया, सबसे बड़े रुपइया’ के जमाना म आजकाल कोनो भी किसम ले पइसा कमई ह धरम-करम बनत जावत हे, त अउ का-कहिबे।

बात कोनो भी किसम से पइसा कमाय के!
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