रायपुर

400 करोड़ का कर्जा करके चले गए मंत्री जी, नई सरकार के लिए बड़ी चुनौती

कमल विहार का 400 करोड़ का लोन अब नई सरकार के लिए चुनौती साबित होने वाला है

रायपुरDec 13, 2018 / 10:06 am

Deepak Sahu

400 करोड़ का कर्जा करके चले गए मंत्री जी, नई सरकार के लिए बड़ी चुनौती

रायपुर. भाजपा सरकार का महत्वकांक्षी प्रोजेक्ट कमल विहार का 400 करोड़ का लोन अब नई सरकार के लिए चुनौती साबित होने वाला है। कमल विहार का नाम भाजपा ने अपने चुनाव चिन्ह को ध्यान में रखते हुए रखा था, वहीं अब कांग्रेस के सामने यह समस्या है कि सेंट्रल बैंक का 400 करोड़ का लोन किस तरह अदा करेंगे। क्योंकि, कमल विहार में प्रापर्टी की बिक्री की रफ्तार धीमी है, वहीं बैंक ने कमल विहार को डिफॉल्टर घोषित कर दिया है।
कमल विहार का नाम भी कांग्रेस को रह-रहकर परेशान कर रही है। आरडीए अधिकारियों के मुताबिक वर्तमान में आरडीए के पास 500 करोड़ से अधिक की सम्पत्ति है, जिससे कमल विहार का लोन छूटा जा सकता है। इन प्रापर्टी की बिक्री ही कमल विहार का लोन अदा करने का एकमात्र रास्ता है। हालांकि आरडीए की सम्पत्ति में भी जमीन विवाद का मामला कायम है।

बदल सकता है नाम
कांग्रेस के शासनकाल में कमल विहार का नाम बदला जा सकता है। इससे पहले भी कांग्रेस के विधायक सत्यनारायण शर्मा कमल विहार में प्रभावितों को मुआवजा दिलाने व जमीन संबंधी मामलों पर कई बार आरडीए कार्यालय में प्रदर्शन कर चुके हैं। कमल विहार के नाम को लेकर पहले भी विवाद हो चुका है।

11 हजार है प्रभावित
कमल विहार में प्रभावितों की संख्या 11 हजार बताई जा रही है। यहां जमीनों के ज्यादातर मामले कोर्ट में लंबित है। कमल विहार के निर्माण के लिए राजपत्र में 2010 में प्रकाशित हुआ, जिसके बाद वर्ष 2011 से निर्माण शुरू हुआ।

50 हजार मामले लंबित
कमल विहार के खस्ता हालत के मामले में जहां आवास एवं पर्यावरण मंत्री राजेश मूणत को सबसे बड़ा जिम्मेदार माना जा रहा है, वहीं इस मामले में राज्य सरकार की नीति को लेकर भी कई सवाल उठे। 1600 एकड़ के टाउनशिप में 80 फीसदी सरकारी व निजी जमीनें अधिग्रहित की गई। 50 से अधिक मामले हाईकोर्ट में लंबित है, वहीं अधिग्रहित जमीनों में कई मालिकों को आज तक मुआवजा नहीं मिल पाया है।

एक नजर में
कमल विहार निर्माण के लिए राजपत्र में प्रकाशन- वर्ष 2010
निर्माण शुरू-वर्ष 2011
कुल लागत- 600 करोड़ से अधिक
बैंक लोन- 500 करोड़ पहली किश्त, 100 करोड़ दूसरी किश्त
मूलधन जमा- लगभग 150 करोड़
प्रति वर्ष ब्याज-लगभग 65 करोड़
हर तीन महीने के किश्तें- लगभग 120
पेनाल्टी- हर महीने 3 से 4 लाख
लोन बाकी- लगभग 400 करोड़

डिफॉल्टर होने की पीछे यह प्रमुख वजह
1. समय पर प्रोजेक्ट पूरा नहीं हो पाना
2. वित्तीय अनियमितता
3. आरडीए के जमीनों पर विवाद
4. जमीन की रजिस्ट्री, नामांतरण पर विवाद
5. अधोसरंचना आधे-अधूरे, जरूरी सुविधाएं
6. मास्टर प्लान के खिलाफ निर्माण

सूडा और निगम अधिकारियों में हडक़ंप
कांग्रेस की सरकार आते ही सूडा और नगर निगम के कई अधिकारियों में हडक़ंप मचा हुआ है। खासकर सबसे ज्यादा चिंतित संविदा पर बड़े मलाईदार पदों पर बैठे अधिकारी हैं। जो अधिकारी भाजपा नेताओं के रहमो-करम पर संविदा पर काम कर रहे थे, वे तो अब रवानगी डालने का भी फैसला कर लिया है। नगर निगम में एक-दो संविदा अधिकारी तो पहले से कहते फिर रहे हैं कि भाजपा की सरकार नहीं आई तो घर ही बैठेंगे। वहीं, कई ऐसे अधिकारी हैं, जो भाजपा नेताओं के ईद-गिर्द घूमते नजर आते थे, वे अब पाला बदलने की तैयारी कर रहे हैं।

प्लेसमेंट एजेंसियों को चिंता
कांग्रेस ने सरकार बनने के बाद ठेका पद्धति समाप्त करने का वादा अपने घोषणा पत्र में की है। अब चूंकि कांग्रेस प्रचंड बहुमत से जीत हासिल कर ली है। ऐसे में भाजपा नेताओं की सिफारिशों पर निगम और सूडा में काम कर रही प्लेसमेंट एजेंसियों के कर्ताधर्ताओं में चिंतित नजर आ रहे है। प्लेसमेंट एजेंसियों के संचालकों को चिंता है कि उनकी एजेंसी ही समाप्त न हो जाए और प्लेसमेंट पर वर्षों से कार्यरत कर्मचारियों को स्थाई न कर दें।

आवास एवं पर्यावरण विभाग के सचिव संजय शुक्ला ने बताया कि रायपुर विकास प्राधिकरण स्वतंत्र संस्था है। इसलिए राज्य सरकार की ओर से लोन के एवज में सहयोग को लेकर अभी तक कोई निर्णय नहीं लिया गया है। आरडीए के पास प्रापर्टी है, जिसकी बिक्री कर कर्ज छूटा जा सकता है।

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