यूं ही नहीं हाथ में ले रही भीड़ कानून
रायपुरPublished: Jun 26, 2018 06:21:07 pm
सोशल मीडिया के रूप में है संवेदनशील हथियार
यूं ही नहीं हाथ में ले रही भीड़ कानून
सरगुजा संभाग के बलरामपुर जिले में भीड़ ने बच्चा चोरी के शक में एक शख्स को इतना पीटा कि वह मर गया। छत्तीसगढ़ में लिंचिंग का यह संभवत: पहला केस है। इस तरह की घटनाएं किसी भीड़ का यूं ही बेकाबू हो जाने का परिणाम नहीं होती, बल्कि इसके पीछे एक पूरा आधार होता है। बीते कुछ सालों में भीड़ ने कानून को हाथ में लेकर ऐसी कई वारदातों को अंजाम दिया है। इनमें गौ-रक्षा की दुहाई देकर तस्करों अथवा तस्करी के आरोपियों की पिटाई से लेकर असम गुवाहाटी में युवती से सरेआम छेड़छाड़ तक शुमार है।
आमतौर पर हम ऐसी घटनाओं की निंदा करते हैं। व्यवस्थाओं को खोट देते हैं। पुलिस को जी-भर के कोसते हैं। लेकिन क्या यह सिर्फ पुलिस प्रशासन का या सिर्फ लॉ एंड ऑर्डर का मसला मानकर छोड़ा जा सकता है। दरअसल सोशल मीडिया के रूप में लोगों के हाथ में एक ऐसा संवेदनशील हथियार है, जो चलाते समय न तो आवाज करता है न चलाने वाले को इसके असर का ऐहसास कराता है। जब इसके असर आते हैं तो वे भयानक होते हैं। सोशल मीडिया, खासकर वॉट्सएप इसका एक बड़ा माध्यम है। इसके जरिए ऐसा कोई ही दिन होता होगा जब किसी से मोबाइल बच्चों के खो जाने की फोटो समेत तस्वीर, बच्चा चोरी के संदिग्धों की तस्वीर, वीडियो, राजनीतिक चुनौती प्रस्तुत करने वाले मैसेज, सामाजिक सौहार्द बिगाडऩे वाले संदेशों वाले वॉट्सएप न आते हों। हम इनकी उपेक्षा कर देते हैं। लेकिन वे लोग नहीं कर पाते, जिनकी शिक्षा कम है, जिन्हें यह सच लगते हैं।
इसके इतर भीड़ को उकसाने में आम समाज में अदृश्य उकसाऊ तत्व इन परिस्थितियों का फायदा उठाकर मृतक का जाति, धर्म ले आते हैं। वे अपने सियासी मंतव्य, गंतव्य को साधने लग जाते हैं। ऐसे कारक तत्व भी इनकी मुख्य वजह हैं। ऐसे में एक बात तो बहुत जरूरी है कि सोशल मीडिया पर कंटेंट को लेकर कोई तो तकनीकी स्कैनर लगाना होगा। तब तक वाट्सएप या ऐसे अन्य नए किसी और प्रयोग को बिना ठोक-बजाए भारत में अनुमति नहीं देनी चाहिए।