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अब खेती के रकबा ह कमतियात हे…!

locationरायपुरPublished: Jul 12, 2018 08:55:00 pm

Submitted by:

Gulal Verma

खेत-खार म मनमाड़े फेक्टरी, कारखाना, कालोनी बनावत जावत हें

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अब खेती के रकबा ह कमतियात हे…!

खेती अउ पसुपालन ह जिनगी के अधार हे। खेती ह किसानमन के आय के परमुख जरिया ए। तभे तो खेत-खार म मनमाड़े फेक्टरी, कारखाना, कालोनी बनावत जावत हें। कोनो जिनिस के अति ह बने नइ होवय। बिकास ल घलो हद म रखे बर चाही। बिकास ले बिनास होवई ह ककरो हित म नइये। पहिली जंगल म रहइयामन रूख-राई, पहाड़, नदिया-नरवा, ढोडग़ा, फल-फूल ऊपर राज करंय। फेर, अब तो पूंजीपति, उद्योगपति अउ सहरियामन के राज आ गे। अब तो बिकास के नांव म जंगल ल अइसे उजारत हें के जंगल ह ठेकला, मुड़वा मनखेमन कस चिक्कन होवत जावत हे।
फेक्टरी, कारखाना वालामन कर पेट तो हाबेच न। खेती-किसानी नइ रहिही त खाही काला? अपन महल, कारखाना, सहर ल खाहीं! आज नइ त काली ए समसिया आहिच। कारखाना वालेमन नइ त कारखाना वालेमन के लइकामन भूख म मर जाहीं। देस ल बचाय बर जइसे सेना म जवान होथे अइसने दुनिया ल पाले, पोंसे बर किसान होथे। फेक्टरी-कारखानामन खेती-किसानी के जगा ल लीलत हें। अइसन म सबो ल मिलके खेती ल बचाय बर परही।
सरकार ल सुध ले बर चाही
हमर छत्तीसगढ़ परदेस ह खेती-किसानी ले दुरिहात जावत हे। बाढ़त फेक्टरी, धुगिंया, गरदा, केमिकल मिले मतलाहा पानी, रसयनिक खातू- दवई के मनमाड़े उपयोग के सेतीे खेती-किसानी उप्पर आफत आ गे हे। उपजाऊ भुइंया ह परिया बरत हे। किसानमन तीन धार के आंसू बोहावत हें। लागत बाढ़त हे तभो ले पइदावार घटत जावत हे। खेती के रकबा हर बछर कमतियावत हे। आज गांव ह गांव कस नइ रहिगे। जिहां देखबे तिहां बड़का-बड़का पक्का मकान, दुकान बनत हे। कारखाना, फेकटरी अपन पांव जमावत हे।
रूखराई काटे बर आज सबके हाथ म टंगिया हे। अब तो खेती-किसानी करई ह मुसकुल होगे हे। किसान करा खेती-खार नइ रहिही त हमर देस-परदेस म खेती-किसानी कइसे बांचही। खेती-किसानी तभे सुग्घर हो पाही जब सरकार ह चेत लगाही। फेक्टरी अइसे जगा खोले जाय जिहां खेती-किसानी के कोनो साधन नइये। फेक्टरी के गंदा पानी अउ धुगिंया निकाले के बेवस्था करे जाय। खेती-किसानी अउ किसान के हित बर सोचे बर परही। तभे ‘धान के कटोराÓ फेर भर पाही।
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