रायपुर

अन्नदाता की सुध लें

बस्तर से 300 किलोमीटर पैदल चलकर किसान राजधानी रायपुर पहुंचे

रायपुरSep 20, 2018 / 08:22 pm

Gulal Verma

अन्नदाता की सुध लें

खेती-किसानी से जुड़ी मांगों को लेकर महीनों से आंदोलित सैकड़ों किसानों का बस्तर से 300 किलोमीटर पैदल चलकर राजधानी रायपुर पहुंचना दुखदायी है। प्रदेश में जब भी कहीं भी किसानों की बातें नहीं सुनीं जाती, उनकी मांगें नहीं मानी जाती, राजधानी में धरना-प्रदर्शन व सभा करने को मजबूर हो जाते हैं। सबसे अहम सवाल है कि किसानों को आंदोलन करने की नौबत क्यों आई? क्या सरकार को उनकी समस्याओं का त्वरित निदान नहीं करना चाहिए? सरकार को बस्तर के किसानों का दुख-दर्द सुनना चाहिए, तो पता चलेगा कि जो वादे किए हैं, योजनाएं बनाई है, मदद पहुंचाई हैं, वह धरातल पर कितनी फलीभूत हुई है।
सर्वविदित है कि प्रदेश में खेती-किसानी घाटे का सौदा साबित हो रही है। महंगाई, सिंचाई संसाधनों व कृषि यंत्रों की कमी, कर्ज और सरकार की वादाखिलाफी से किसान बदहाल हैं। प्रदेश के अन्नदाता किसानों का भला कैसे और कब होगा, कोई नहीं जानता? हर कोई किसानों का हितैषी होने का दावा करता है, लेकिन आज तक न सरकारें और न ही राजनीतिक दलों ने इनकी खास परवाह की। अफसोसनाक है कि धान का कटोरा कहे जाने वाले छत्तीसगढ़ में न किसानों की स्थिति ठीक है न खेती-किसानी की, न सिंचाई संसाधानों की न फसलों को सुरक्षित रखने की और न ही सूखा राहत व फसल बीमा के उचित भुगतान की। लगता है कृषि और किसानों का उत्थान व सुरक्षा सरकारी प्राथमिकता में शुमार नहीं है। होता तो किसान आर्थिक तंगी से नहीं जूझते। वे कर्ज माफ करने, फाइनेंस कंपनियों द्वार्रा खींचे गए ट्रैक्टर को वापस दिलाने, सभी किसानों को फसल बीमा का संपूर्ण लाभ दिलाने, किसानों के सभी वाहनों को टोल फ्री करने तथा डॉ. स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशें तत्काल लागू करने सहित अन्य मांगों को लेकर आंदोलन करने को मजबूर नहीं होते। प्रदेश में किसानों द्वारा की जा रही आत्महत्या किसी से छिपी नहीं है। किसानों से किए गए वादों को पूरा नहीं करने से सरकार की नीयत पर सवाल उठ रहे हैं। किसान मात्र वोट बैंक नहीं हैं। वे अर्थव्यवस्था की रीढ़ हैं।
बहरहाल, किसानों की बदहाली महज आश्वासनों और वादों से दूर नहीं हो सकती। इसके लिए दूरदृष्टि अपनाने और सोच बदलने की जरूरत है। ऐसा शासन और प्रशासन दोनों को करना चाहिए। बेहतर यही होगा कि सरकार सबसे पहले संवादहीनता व हठधर्मिता का रास्ता छोड़े और किसानों की मूलभूत समस्याओं व मांगों को हल करने पर ध्यान केन्द्रित करे और उसी के हिसाब से योजनाएं बनाए। लागत का दोगुना दाम तथा सूखा राहत व फसल बीमा का त्वरित व वास्तविक लाभ दिलाए। हर किसान की खुशहाली और उन्नति का मार्ग प्रशस्त करना प्राथमिकता होनी चाहिए।
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