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Diwali 2021: दीपोत्सव महापर्व का 2 नवंबर से आगाज, जानें धनतेरस से लेकर दिवाली और भाई दूज तक शुभ मुहूर्त की पूरी जानकारी

locationरायपुरPublished: Nov 01, 2021 06:18:15 pm

Submitted by:

Ashish Gupta

Diwali 2021: शुभ घड़ियों के योग, ग्रह-नक्षत्रों की अनुकूल दशाओं की वजह से इस बार धनतेरस (Dhanteras) पर दिवाली जैसा संयोग बना है। 2 नवंबर को धनतेरस के दिन दिनभर दुर्लभ त्रिपुष्कार का शुभ मुहूर्त है।

Diwali 2021 Shubh Muhurat

Diwali 2021

रायपुर. Diwali 2021: शुभ घड़ियों के योग, ग्रह-नक्षत्रों की अनुकूल दशाओं की वजह से इस बार धनतेरस (Dhanteras) पर दिवाली जैसा संयोग बना है। 2 नवंबर को धनतेरस के दिन दिनभर दुर्लभ त्रिपुष्कार का शुभ मुहूर्त है। वैसा ही दिवाली पर्व में ग्रहों की स्थिति में चित्रा, स्वाति नक्षत्र और प्रीति योग एवं आयुष्मान योग की युति में दीपोत्सव (Deepotsav) में महालक्ष्मी (Maa Lakshmi) की पूजा होगी।
ज्योतिषियों के अनुसार धनतेरस पर मनपंसद वस्तुओं की खरीदारी जितनी फलदायी, उतना ही गोधूलि बेला में 13 दीपों से महालक्ष्मी के आगमन की पूजा सुख-समृद्धि का संयोग बना रही है। उत्सव का यह माहौल 15 दिनों तक यानी देवउठनी एकादशी पर तुलसी विवाह को छोटी दिवाली के रूप में मनाने के साथ समापन होता है।
दिवाली महोत्सव को लेकर लोगों में खासा उत्साह है। हर सेक्टर के बाजार सजकर तैयार हैं। लोग अपने-अपने बजट और योजना के अनुसार खरीदारी करने के लिए निकल पड़े हैं। महालक्ष्मी के आगमन की खुशी में घरों को चमकाने और सजाने में जुटे हैं। दिवाली के इन पांच दिनों में समाज के लोग अपने रीति-रिवाज और परंपरा के अनुरूप उत्सव मनाएंगे। दीप मालाएं सजाएंगे।

तिथियों को लेकर कोई भ्रम नहीं
पंडित मनोज शुक्ला और ज्योतिषी डॉ. विनीत शर्मा के मुताबिक पांच दिवसीय महोत्सव की तिथियों को लेकर कोई भ्रम की स्थिति नहीं हैं। दीपोत्सव का ये त्योहार पर्व प्रधान माना गया है। इसलिए कौन सी तिथि कितने बजे से प्रारंभ होती है, इसका महत्व नहीं है। बल्कि पर्वकालीन तिथियां ही सर्वमान्य होने से धनतेरस से लेकर भाई दूज तक अलग-अलग दिन उत्सव मनाना श्रेष्ठतम होगा।

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ये हैं पंच महोत्सव की तिथियां
पहला दिन धनतेरस : पंडितों के अनुसार कार्तिक मास के कृष्णपक्ष की त्रयोदशी तिथि से लेकर शुक्लपक्ष की द्वितीया तिथि तक लोक पर्व की ये प्रमुख पांच तिथियां अलग-अलग रूपों और परंपरा में मनाई जाती हैं। जो 2 नवंबर को धनतेरस से प्रारंभ होती हैं। पहले दिन मन मुताबिक खरीदारी करने से जब नई वस्तुएं आती हैं, उल्लास दोगुना हो जाता है। धनतेरस पर भगवान धनवंतरि की जयंती के रूपों में 13 दीपों से लक्ष्मी आगमन का आगाज होता है। धनतेरस के दिन दीपदान और पूजन का अतिशुभ समय शाम 5 बजे से 06:30 मिनट तक रहेगा। इसके अलावा शाम 06:30 मिनट से रात 08:11 मिनट का समय भी पूजा और दीपदान के लिए शुभ है।

दूसरा दिन नरक चतुर्दशी या रूपचौदस
दूसरे दिन 3 नवंबर को चतुर्दशी तिथि रूप चौदस (Roop Chaudas) की रूप में मनाई जाती है। इसी दिन माताएं-बहनें महालक्ष्मी के पूजन के लिए तैयारी करती हैं। मान्यता यह भी है कि इसी दिन द्वापरयुग में भगवान श्रीकृष्ण ने नरकासुर का वध किया था, जिसे नरक चौदस के रूप में घर के दक्षिण दिशा की ओर यम के नाम पांच दीप जलाकर सुख-शांति की कामना की जाती है। इसके लिए दीपक जलाने का शुभ समय शाम 6 बजे से लेकर रात 8 बजे तक रहेगा।

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तीसरे दिन 4 नवंबर को दीपोत्सव
पांच दिनी दिवाली महोत्सव के तीसरे दिन यानी 4 नवंबर को दीपोत्सव की धूम। इसी दिन त्रेतायुग में भगवान श्रीराम लंका पर विजय प्राप्त करने के बाद अयोध्या वापस लौटे थे। तब दीपमालाओं से स्वागत हुआ था। अर्थात भगवान लक्ष्मीनारायण और माता लक्ष्मी के पूजन उल्लास से करते हैं। आतिशबाजी और मिठाइयां खिलाने का जश्न। दीपावली के दिन पूजा का शुभ मुहूर्त रात 08:10 मिनट से लेकर रात 10:15 मिनट तक रहेगा।

चौथे दिन गोवर्धन पूजा
गौ माता और गोवंश संवर्धन का यह दिन गोवर्धन पूजन (Govardhan Puja) का दिन होता है, जिसे भगवान श्रीकृष्ण ने एक अंगुली पर धारण किया था। अत: चौथे दिन 5 नवंबर को गौमाता को खिचड़ी खिलाकर लोग पूजा करते हैं। इस तिथि पर खासतौर पर यादव समाज गोबर का पर्वत बनाकर दीप जलाकर गोवर्धन की पूजा कर अपने पारंपरिक कलाओं राउत नाचा का प्रदर्शन करते हैं। इस दिन पूजा का शुभ समय दोपहर 03:02 बजे से लेकर रात 8 बजे तक रहेगा।

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पांचवें दिन भाई दूज
कार्तिक शुक्लपक्ष की द्वितीया तिथि पर 6 नवंबर को भाई दूज (Bhai Dooj) का उत्सव मनेगा। इस दिन माता यमुना की तरह बहनें अपने भाइयों के दीर्घायु की कामना के लिए तिलक कर आरती उतारती हैं। तो भाई हमेशा सुख-दुख में साथ देने का वचन देते हैं। भाई दूज पर तिलक का शुभ समय सुबह 10:30 से 11:40 तक, फिर 01:24 बजे से शाम को 04:26 मिनट तक, शाम 06:02 मिनट से लेकर रात 10:05 मिनट तक रहेगा। इसी दिन कायस्थ समाज अपने ईष्टदेवता भगवान चित्रगुप्त की जयंती मनाते हैं। इसी के साथ पांच दिनी महोत्सव का समापन होता है।

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