‘का तैं मोला मोहनी डार दिए गोंदा फूल’ के पाछू के दरसन
परमानंदजी ह डा. बलदेव के मनसा भरम ल टमड़ डारिन अउ घर के दुवारी कोती ल झांक के आरो दिन ‘ए गियां आ तो’। उंकर बुलउवा म एक चउदा-पंदरा बछर के चंदा बरोबर सुग्घर नोनी आगू म आके ठाढ़ होगे अउ कहिस- काये बबा। तब परमानंदजी अपन उही नतनीन डहर इसारा करत कहिन- इही वो गियां आय, जे दिन ए ह ए धरती म आइस, उही दिन ए गीत ल लिखे रेहेंव। ‘तोर होगे आती अउ मोर होगे जाती, रेंगते-रेंगत आंखी मार दिए गोंदा फूल।’
रायपुर
Published: May 30, 2022 05:05:25 pm
छत्तीसगढ़ी गीत-संगीत के मयारुकमन सुप्रसिद्ध गायक रहे केदार यादव के गाए ए लोकप्रिय गीत. ‘का तैं मोला मोहनी डार दिए गोंदा फूल, तोर होगे आती अउ मोर होगे जाती, रेंगते-रेंगत आंखी मार दिए ना’, ऐला जरूर सुने होहीं अउ घनघोर सिंगारिक गीत के सुरता करत मन भर मुसकाए होहीं। फेर ए गीत के रचयिता लोककवि बद्रीबिसाल यदु ‘परमानंद’ ऐला का कल्पना कर के कइसन संदर्भ म लिखे रिहिन हें, ऐला जानहू, त परमानंदजी के कल्पना अउ वोकर गहराई के कायल हो जाहू।
बात बछर 1989-90 के आय। एक दिन रायगढ़ के वरिस्ठ साहित्यकार डॉ. बलदेवजी के मोर जगा सोर पहुंचिस के हमन लोककवि बद्रीबिसाल यदु संग भेंट करे बर रायपुर आवत हंन, तहूं तइयार रहिबे। काबर ते हमन वोकर घर ल देखे नइ अन, तहीं हमन ल वोकर घर लेगबे।
9 जनवरी 1990 के डॉ. बलदेव रायगढ़ के ही एक अउ साहित्यकार रामलाल निसादराज संग रायपुर पहुंचगें। इहां रायपुर म आकाशवानी म कार्यरत खगेस्वर परसाद यादव अउ मंय उंकर संग संघर गेंन।
सबो साहित्यकारमन ल लेके परमानंदजी के घर गेन। उहां आदर-सत्कार अउ चिन-चिन्हार के बाद साहित्यिक गोठ-बात चालू होइस। सब तो बढिय़ा चलत रिहिस, तभे डॉ. बलदेवजी थोक मुस्कावत, मजा ले असन पूछ परिन-‘परमानंद जी! ‘का तैं मोला मोहनी डार दिए गोंदा फूल’ जइसन गीत ल आप कब लिखे रेहेव। परमानंदजी ह डा. बलदेव के मनसा भरम ल टमड़ डारिन अउ घर के दुवारी कोती ल झांक के आरो दिन ‘ए गियां आ तो’। उंकर बुलउवा म एक चउदा-पंदरा बछर के चंदा बरोबर सुग्घर नोनी आगू म आके ठाढ़ होगे अउ कहिस- काये बबा। तब परमानंदजी अपन उही नतनीन डहर इसारा करत कहिन- इही वो गियां आय, जे दिन ए ह ए धरती म आइस, उही दिन ए गीत ल लिखे रेहेंव। ‘तोर होगे आती अउ मोर होगे जाती, रेंगते-रेंगत आंखी मार दिए गोंदा फूल।’
वो नोनी छी: बबा कहिके घर म खुसरगे। तब परमानंदजी के निरमल हांसी घर-अंगना के संगे-संग हमरोमन के चेहरा म बगर गिस। उन कहिन-डॉक्टर साहेब, कवि के जाए के बेरा होवत हे अउ आगू म उन्मत्त परकरीति हे, उद्दाम कविता के रूप म दंग-दंग ले खड़ा हो गिस।
घनघोर सिंगारिक गीत कस लागत ए रचना के मूल म कतका निरदोस अउ उज्जवल भाव हमर जइसन आम कवि-लेखकमन के कल्पना ले बाहिर के तस्वीर आय।
परमानंदजी आगू कहिन- ‘नारी सौंदर्य अउ परेम बरनन म मेहा वोकर पराकरीतिक स्वरूप ल जरूर अपनाय हौं, फेर सिथिलता ल कभु जगा नइ दे हौं। ये प्रसंग संग संलग्न फोटो उही दिन के आय। जेमा खाल्हे म डेरी डहर ले रामलाल निसादराज, बद्रीबिसाल यदु, परमानंदजी अउ डॉ. बलदेव, पाछू म खड़े खगेस्वर परसाद यादव अउ मंय सुसील वरमा ‘भोले’।

‘का तैं मोला मोहनी डार दिए गोंदा फूल’ के पाछू के दरसन
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