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मांदर रोवत हे पठउंहा म

locationरायपुरPublished: Oct 22, 2018 07:06:12 pm

Submitted by:

Gulal Verma

लोक बाजा

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मांदर रोवत हे पठउंहा म

हमर पुरखौती सभ्यता. संस्करीति ल पास्चाात्य सभ्यता अउ संस्करीति ह लील डारिस हे। खानपान, पहिनावा, ओडऩा, बोली, गीत, संगीत के संगे-संग आज गाजा-बाजा घलो ह बदलत हे। पुरखौती बाजामन कमतिया गे हे। कोनो- कोनो जघा भर म देखे बर मिलथे।
हमर पुरखौती परचानी बाजामन के बरनन सामवेद अउ परचानी संगीत सागर पुस्तकमन म मिलथे। अलग-अलग ताल के अलग-अलग मात्रा रहय। जउन ह सबके मन ल मोहय। फेर, आज के इलेकटरानिक बाजामन म वो बात नइये। पुरखौती बाजा जइसे -ढोलक, तबला, मिरदंग, मांदर, मांदरी, झांझ, मंजिरा, झुमका, गुदम, दफड़ा, टिनकी अउ किसिम- किसिम के मनमोहक बाजामन अब नदावत हे।
नवरात परब म दुरगा दाई के सेवा होवय त सुग्घर मांदर, मांदरी, ढोलक, तबला, झांझ, मंजिरा, ढोलकी, थारीमन परमुख रहंय। जेकर अवाज ह बिना पोंगा (ध्वनिबिस्तारक यंत्र) के चारोमुड़ा बगर जाय। परियावरन ल सुध्द अउ भगतीमय करय। जेकर ताल सुन के मनखे नाचे-झ्ूमे ल धर लय। फेर, इलेक्टरानिक बाजामन के सेती ध्वनि परदूसन बाढ़त हे। वातावरन ह न सुद्ध होवत हे न भगतीमय।
देवी भजन के बात करबो त पहिली हमर सियानमन पचकडिय़ा, सतकडिय़ा, मावलिया, जस, सेवा, पचरा, सिंगार आदि भजन ल अलग- अलग दिन परब देख के गावंय। जेकर ले सबो के मन म भगती ह समा जाय। देबी भजनमन म बड़का-बड़का मंतर रहय। भगतमन के, देवतामन के अउ बीरमन के गाथा छुपे रहय। जेकर ले सरद्धालुमन के मन म उछाह, सांति, करुना, दया, परेम, दुलार जइसन अलग-अलग रस ह समाहित हो जाय। ऐकर से हिरदे ल परम आनंद पहुंचावय।
आज के गीतमन घलो भगती ले सराबोर रथे, फेर जउन आनंद पहिली के भजन, गीत संगीत म रहय वो आनंद आज खोजबो तभो नइ मिलय। पास्चात्य संस्करीति हावी होके हमरमन तन-मन ल परभावित करत हे। हमर वातावरन, हमर परिवेस म बुरा परभाव डारत हे। फेर हमन वोला रोके के कोनो बने अउ जोरदरहा उदिम नइ करत हन। हमन ल अपन पुरखौती जिनिसमन बचाय बर परही। अपन संस्करीति, संस्कार, गीत-संगीत, बाजा-गाना, रहन-सहन, पहनावा, बोली-भाखा ल सहेजे, संवारे के खच्चित जरूरत हे।

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