script

संयम के बिना जीवन की सार्थकता नहीं है : सुमनलता मोदी

locationरायपुरPublished: Sep 16, 2021 05:51:06 pm

Submitted by:

dharmendra ghidode

श्री 1008 भगवान आदिनाथ नवग्रह पंच बाल्यती दिगंबर जैन मंदिर में दस लक्षण महापर्व पूरे भक्ति भाव से मनाया जा रहा है। आज पर्यूषण पर्व के छठवा दिन उत्तम संयम धर्म है।

संयम के बिना जीवन की सार्थकता नहीं है : सुमनलता मोदी

संयम के बिना जीवन की सार्थकता नहीं है : सुमनलता मोदी

भाटापारा. श्री 1008 भगवान आदिनाथ नवग्रह पंच बाल्यती दिगंबर जैन मंदिर में दस लक्षण महापर्व पूरे भक्ति भाव से मनाया जा रहा है। आज पर्यूषण पर्व के छठवा दिन उत्तम संयम धर्म है।
सुबह 7 बजे मंगलाष्टक से पूजा प्रारंभ की गई। सर्वप्रथम देवाधिदेव 1008 भगवान श्री मल्लीनाथ जी की प्रतिमा को मस्तक पर विराजमान कर सनत कुमार, संदीप कुमार जैन ने पांडुक शिला पर विराजमान कर श्री जी का मंगल अभिषेक किया। शांति धारा का सौभाग्य सनत कुमार, संदीप कुमार जैन, अक्षत मोदी को प्राप्त हुआ। मस्तकाभिषेक उपरांत मंगल आरती की गई। आरती के पश्चात श्री देव शास्त्र गुरु पूजन, सोलह कारण पूजन, पंचमेरु पूजन, दशलक्षण पूजन, आचार्य श्री विद्यासागर, राष्ट्रसंत मुनि श्री 108 चिन्मय सागर महाराज जंगल वाले बाबा की संगीतमय सामूहिक पूजन संपन्न की गई।
शास्त्र वाचन के दौरान सुमनलता मोदी ने कहा कि धर्म का छठवां लक्षण है उत्तम संयम। संयम का सीधा सा अर्थ है दौड़ते हुए इंद्रिय विषयों की लगाम अपने हाथ में रखना तथा दया भाव से छठ काय के जीवों की अपने द्वारा विराधना ना होने देना। जिस प्रकार सड़क पर चलने वाले व्यक्ति को सड़क के नियमों का पालन करना अनिवार्य होता है, उसी प्रकार मोक्ष मार्ग पर चलने वाले साधक को नियम संयम का पालन करना अनिवार्य है। सभी को अपनी शक्ति अनुसार संयम धारण करना चाहिए।
अभिषेक मोदी ने कहा कि मनुष्य शरीर की बनावट में लगा रहता है, यह शरीर जो महा मल, अत्यंत अशुचि पदार्थों से बना हुआ है। जिस शरीर की जड़ ही अशुद्ध है, उसे कितना ही शुद्ध करो, सजाओ वह कभी भी शुद्ध नहीं हो सकता। हमने विषय भोगों को नहीं भोगा, अपितु विषय भोग ने ही हमें भोग लिया है। इस दुर्लभ मनुष्य जन्म को हम विषय भोग में व्यर्थ गंवा रहे हैं। पराई वस्तुओं की मोह लीला में फंसकर व्यक्ति अपने आत्म हित को भूल जाता है। ध्यान रखना यह संसार स्वार्थ का सदा होता है। संसार के स्वरूप को समझकर, शरीर की सेवा बंद कर इस शरीर के माध्यम से आत्मा का हित करना चाहिए। यदि हमें सुखी रहना है तो हमें अपनी आवश्यकताओं को सीमित करना चाहिए।
दुर्लभ मनुष्य जन्म को हम विषय भोग में व्यर्थ गवा रहे : अभिषेक
आचार्य भगवान कहते हैं हमें अपने जीवन में मन इंद्रियों को नियंत्रण में रखना चाहिए। मोक्ष मार्ग पर चलने के लिए हमारे जीवन में नियम संयम का ब्रेक होना चाहिए, संयम के बिना जीवन की सार्थकता नहीं है। अभिषेक मोदी ने बताया किसी ने कहा है कि जो एक बार खाए हो योगी, जो दो बार खाए वह भोगी, जो तीन बार खाए वह रोगी और जो बार-बार खाए उसकी दशा क्या होगी। संयम उम्र की नहीं, वासनाओं के त्याग की अपेक्षा रखता है। संयम के मायने हैं जीवन को अनुशासित करना। अपनी संयम शक्ति, विल पावर को बढ़ाना। हम अपना जीवन व्यर्थ कर रहे हैं। शरीर तो राम जी को भी मिला था और रावण को भी। राम जी ने संयम व तप को अपनाकर मोक्ष प्राप्त कर लिया। वहीं रावण विषय वासनाओ में लिप्त होकर नरक चला गया। श्री 108 चिन्मय सागर महाराज जो जन जन को नशा मुक्त कराते थे और कहते थे कि संसार का कितना भी बुरा संस्कार क्यों ना हो, हम संकल्पित हो जाते हैं अपने जीवन में व्रत, नियम, संयम को धारण कर लेते हैं तो बुरे संस्कार नष्ट होने शुरू हो जाते हैं।

ट्रेंडिंग वीडियो