लाल-लाल पताल ल देख के आंखी ह ललियावत हे!
रायपुरPublished: Jul 03, 2023 03:45:40 pm
हमर देस के जनता ह नासमझ नइए, सब ल समझथे। वोहा खुदे सबो ल ठीक कर सकथे। महंगई ल घलो कमतिया सकथे। फेर, वोट देके नेता चुन लेथें। कहे बर अपन (जनता के) सरकार बनवा देथें। तहां ले नेता ह जेन कहिदिस, सरकार ह जउन करदिस बस उही ह ‘राम बान’ होगे।


लाल-लाल पताल ल देख के आंखी ह ललियावत हे!
संगी! मोर तो खींसा ह दुच्छा हो गे साग-भाजी बिसात-बिसात। अतेक बाढ़े महंगई म साग-भाजी बिसई ह कोनो मोटर-गाड़ी, फटफटी बिसई बरोबर हांसी-ठठ्ठा के खेल नोहय भई! का पताल ह 5-10 रुपिया किलो म मिलत हे? चटनी बर घलो गरीब मनखे ह पताल नइ बिसा सकत हे। रोजेच्च साग-भाजी के भाव ह बाढ़तेच जावत हे, फेर कोनो ह खाय बर नइ छोड़त हंन! एक हफ्ता कोनो साग-भाजी, पताल नइ खाय के उपास देसभर के मनखे रहि जतिन, त फेर पाके महुआ कस साग-भाजी के भाव ह टप-टप भुइंया म गिरे बर धर लेतिस!
देस के अबादी सवा सौ करोड़ ले उपराहा हे त फेर साग-भाजी ह घलो अब्बड़़ अकन चाही। फेर, हाय रे किस्मत! कभु जादा पानी गिरे, बाढ़ आय ले, त कभु पानी नइ गिरे, पानी नइ पलेय के सेती साज-भाजी ल नुकसान होथे। कम जीनिस ह जादा मनखे ल कइसे पुरही! फेर दलाल, बेपारी, कोचिया अउ बेचइयामन के लालच, जमाखोरी, मुनाफाखोरी ह महंगई ल अउ बढ़ा देथे।
हमर देस के जनता ह नासमझ नइए, सब ल समझथे। वोहा खुदे सबो ल ठीक कर सकथे। महंगई ल घलो कमतिया सकथे। फेर, वोट देके नेता चुन लेथें। कहे बर अपन (जनता के) सरकार बनवा देथें। तहां ले नेता ह जेन कहिदिस, सरकार ह जउन करदिस बस उही ह ‘राम बान’ होगे।
बड़ेकजनिक झोला म तीन सौ रुपिया के थोरकिन साग-भाजी धरे पताल ल टुकूर-टुकूर देखत मेहा सोचेंव - जनता हो! अतेक झन होके थोरकिन नेता, मंतरीमन ल वोकर ‘जगा’ काबर नइ बतावव? जमाखोर, मुनाफाखोर बेपारी-दलालमन ल सबक काबर नइ सिखावव? फेर, जनता ह ए उम्मीद म महंगई ल झेलत हावंय के, सरकार ह एक दिन साग-भाजी ल ’टके सेर’ बेचवाही! बेपारी-दलालमन दानी बन के मुनाफाखोरी ल छोड़ दिहीं! बेचइयामन धरमात्मा बन के साग-भाजी ल वाजिब भाव म बेचहीं!
पताल ह मोला घूरत कहिस - तेहा का सोचत हस? तोर सोचे, चिल्लाय, समझाय ले का मोर भाव उतर जही? नेतामन ल सिरिफ चुनई के चिंता हे। जेमन कुरसी म बइठे हें, तेमन कुरसी बचाय के अउ जेमन कुरसी ले उतरे हें, तेमन कुरसी पाय के जतन करत हें।
पताल ह आंखी लड़ेरत बोलिस- चुनई म जनता ह अपन जम्मो गुस्सा ल वोट देके पाछू वाले सरकार उप्पर उतार देथे। नवा सरकार चुन लेथे। तहां नवा सरकार ल पांच बछर ले अपन मुड़ी म बइठार के ‘बने दिन आय’ के अगोरा करथें। महंगई ल झेलथें। 7५ बछर ले अइसेच चलत आवत हे अउ कोन जनी कतेक बछर ले चलही। सबो ल अपनेच परे हे। पद अउ पइसा ह देस अउ जनता ले बढ़ के हो गे हे। जनता ल वोकर भाग ऊपर छोड़ देथें या फेर भगवान के भरोसा, त अउ का-कहिबे।