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खौफ का खेल

locationरायपुरPublished: Oct 17, 2018 07:39:23 pm

Submitted by:

Gulal Verma

इस साल अब तक ६० से अधिक लोगों की माओवादियों ने मुखबिर होने के शक मे हत्या की है।

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खौफ का खेल

माओवादी इन दिनों बस्तर में सुनियोजित तरीके से ग्रामीणों को पुलिस का मुखबिर करार देते हुए बेरहमी से मौत के घाट उतार रहे हैं। दरअसल माओवादी चुनाव से पहले एक बार फिर से खौफ का राज कायम करना चाहते हैं। हाल ही में एक स्कूली छात्र समेत तीन लोगों की माओवादियों ने पुलिस का मुखबिर बताकर हत्या कर दी। इस साल अब तक ६० से अधिक लोगों की माओवादियों ने मुखबिर होने के शक मे हत्या की है। इस वजह से अंदरूनी इलाकों में दहशत का माहौल है। माओवादियों ने लोगों को गांव से बाहर जाने और बाहरी लोगों के गांव में आने पर पाबंदी लगा रखी है। ज्यादातर सरपंच- सचिव गायब हो चुके हैं। सरकारी अमला भी यहां पहुंचने में कतराता है। सलवा जुडूूम की काट के तौर माओवादियों ने इस पैतरे को अपनाया था, जिसमें काफी हद तक सफल रहे। दरअसल यह माओवादियों की सुनियोजित मनोवैज्ञानिक युद्धकला का हिस्सा है। इस तरीके से वे एक तीर से कई निशाना साधने में कामयाब हो रहे हैं।
माओवादी खौफ के दम पर अपना सूचना तंत्र विकसित करने के साथ ही पुलिस के तंत्र का सफाया कर रहे हैं। वे मुखबिरों को अगवा करने के बाद अपने हथियारबंद दस्ते के साथ उन्हें आसपास के गांवों में घुमाते हैं। इसके बाद भीड़ भरी जन अदालत में सजा के तौर पर उन्हें बेरहमी से कत्ल कर दिया जाता है। इसके बाद शव को मुख्य सड़क के किनारे फेंक दिया जाता है। जिससे उनके खौफ के खेल को ज्यादा प्रचार मिल सके। शव के साथ धमकी भरा पर्चा भी छोड़ दिया जाता है कि पुलिस का साथ देने वालों का यही हश्र होगा।
बहरहाल, माओवादियों की साजिश का यह नया जाल सुरक्षा बलों के लिए खतरनाक साबित हो रहा है। लगातार वारदातों से पुलिस के मददगारों के मनोबल पर भी असर पड़ रहा है, जिनके दम पर वे माओवादियों के खिलाफ मुहिम में कामयाबी हासिल कर रहे हैं। लिहाजा, सुरक्षा बलों को भी अपने सूचना तंत्र को विकसित करने के साथ ही मददगारों की पहचान गोपनीय रखने के साथ ही उन्हें सुरक्षा भी देना होगा। इस दिशा में आंध्रप्रदेश का अनुसरण काफी कारगर साबित हो सकता है।
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