बस्तर में खौफ का खेल
चार माह बस्तर में ४० से अधिक ग्रामीणों की मुखबिर के शक में हत्या

बस्तर में माओवादी इन दिनों सुनियोजित तरीके से पुलिस का मुखबिर करार देते हुए ग्रामीणों को बेरहमी से मौत के घाट उतार रहे हैं। दरअसल बीते १ मार्च को तेलंगाना से सटे बीजापुर के कर्रीगुट्टा में पुलिस ने १० माओवादियों को मुठभेड़ में मार गिराया था। अपने साथियों को खोने की बौखलाहट में माओवादी एक बार फिर से खौफ का राज कायम करना चाह रहे हैं। पिछले चार माह में अकेले बीजापुर जिले मेेंं १२ ग्रामीणों की हत्या पुलिस रिकार्ड में दर्ज है। वहीं इस अवधि में समूचे बस्तर में ४० से अधिक ग्रामीणों की मुखबिर के शक में हत्या हुई है। इस वजह से अंदरूनी इलाकों में इन दिनों दहशत का माहौल है। बस्तर में निर्दोषों का मारा जाना चिंता का विषय है।
माओवादियों ने लोगों के गांव से बाहर जाने और बाहरी लोगों के यहां आने पर पाबंदी लगा रखी है। ज्यादातर सरपंच-सचिव गायब हो चुके हैं। सरकारी अमला भी यहां जाने से कतरा रहा है। सलवा जुडूम की काट के तौर पर भी माओवादियों ने इसी पैतरे को अपनाया था। दरअसल, यह माओवादियों की सुनियोजित मनोवैज्ञानिक युद्धकला का हिस्सा है और इस तरीके के जरिए वे एक तीर से कई निशाने साधने में कामयाब हो रहे हैं।
माओवादी खौफ के बूते अपना सूचना तंत्र विकसित करने के साथ ही पुलिस के तंत्र का सफाया कर रहे हैं। वे मुखबिरों को अगवा करने के बाद अपने हथियारबंद दस्ते के साथ आसपास के गांवों में घुमाते हैं। इसके बाद भीड़ भरी जन अदालत में सजा के तौर पर उन्हें बेरहमी से कत्ल कर दिया जाता है। शव मुख्यमार्ग के किनारे फेंक दिया जाता है। जिससे उनके खौफ के इस खेल को ज्यादा प्रचार मिल सके।
बहरहाल, माओवादियों की साजिश का यह नया जाल सुरक्षा बलों के लिए खतरनाक साबित हो सकता है। लगातार वारदातों से पुलिस के मददगारों के मनोबल पर भी असर पड़ रहा है। जिनके दम पर वे माओवादियों के खिलाफ मुहिम में कामयाबी हासिल कर रहे हैं। माओवादियों की इस साजिश के विरुद्ध सरकार को गंभीरता से पहल करना चाहिए, ताकि सुरक्षा बलों के समर्थकों का मनोबल बना रहे।
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