हिंसा के गढ़ में शांतिमार्च
छत्तीसगढ़, सीमांध्र, तेलंगाना, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र और झारखंड के १५० गांधीवादी, समाजसेवी, पत्रकार, युवा शोधार्थी और आदिवासी शामिल
हिंसा के गढ़ में शांतिमार्च
हिंसा से झुलसते बस्तर में अमन और चैन की फिर से बहाली के लिए राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की १५०वीं जयंती के अवसर पर शांति मार्च का आगाज हुआ। छत्तीसगढ़ से सटे सीमांध्र के चेट्टी स्थित शबरी गांधी आश्रम से यह पदयात्रा निकली। जिसमें छत्तीसगढ़, सीमांध्र, तेलंगाना, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र और झारखंड के १५० गांधीवादी, समाजसेवी, पत्रकार, युवा शोधार्थी और आदिवासी शामिल हैं। जिन जगहों पर इस यात्रा का पड़ाव होगा, वहां लोगों से संवाद स्थापित कर शांति की अपील की जाएगी। दरअसल, बस्तर के आदिवासी बीते चार दशकों से माओवादी और पुलिस इन दो पाटों के बीच पीस रहे हैं। गोली किसी की भी चले निशाना आदिवासी ही बन रहे हैं। लिहाजा शांति मार्च के जरिए चार दशकों से जारी खूनी संघर्ष पर विराम लगाने की पहल की जा रही है।
नेशनल कंसोर्टियम के सर्वे के मुताबिक भारत में बीते साल जितने आतंकी हमले हुए उनमें से सबसे ज्यादा ५० फीसदी वारदातें केवल छत्तीसगढ़ (बस्तर) में हुई हैं। इसके बाद मणिपुर, जम्मू-कश्मीर और झारखंड का स्थान है। साल २००४ में तात्कालीन आंध्रप्रदेश सरकार और माओवादी संगठनों के बीच शांतिवार्ता कई विषयों में सहमति न बन पाने के कारण विफल रही। इस बीच मध्यभारत में हुए खूनी संघर्ष में १२ हजार से अधिक लोगों को जान गंवानी पड़ी। इनमें २७०० लोग सुरक्षा बलों के और ९३०० से अधिक आदिवासी हैं। बस्तर में शांति कायम हो, आदिवासियों को उनका हक मिले, माओवाद का खात्मा हो। कई मंचों से ये बातें जरूर होती हंै। मगर कैसे? इसकी रुपरेखा क्या होगी? इस पर सार्थक संवाद कम ही होते हैं। इस बीच माओवादियों ने इस शांति मार्च का विरोध करते हुए भी बातचीत का रास्ता खुला होने की बात दुहराई है। बहरहाल, हिंसा और प्रतिहिंसा से किसी सार्थक नतीजे पर नहीं पहुंचा जा सकता है। हिंसा और अविश्वास के दौर में परस्पर संवाद ही आशयों का संकेत दे सकते हैं।
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