क्या बदलाव आता है
यदि आप बालपन से नाटक से जुड़ जाएं तो आपका व्यक्तित्व विकास अलग ही दिशा में होने लगेगा। पर्सनालिटी डवलपमेंट के लिए रंगकर्म सबसे बेहतर रास्ता है। जब कोई बालक किसी नाटक की प्रस्तुति देने जाता है तो वह सबसे पहले यही सीखता है कि खुद के सामान को सुरक्षित कैसे रखा जाए। इसके अलावा वह यह सीखता है कि खाने के बाद प्लेट को धोकर कैसे किनारे रखना है। उसके बोलने-चलने व उठने से लेकर पूरे व्यक्तित्व में सकारात्मक बदलाव नजर आता है।
एेसे आए निर्देशन में
हायर सेकंडरी स्कूल के बाद दुर्गा कॉलेज के तत्कालीन प्रिंसपल जोगलेकर सर ने मुझे नाटकों में काम करने के लिए प्रेरित किया। अनिल कालेले निर्देर्शित मराठी के आठ नाटकों में अभिनय किया है। ढाई घंटे वाले बड़े नाटक आठ से 10 किए हैं। हिंदी के बड़े नाटकों की बात करूं तो करीब 15 किए हैं। हमारे वरिष्ठ अनिल कालेले, राजकमल नायक, कुंजबिहारी शर्मा के मार्गदर्शन में मैंने नाटक की बारीकियां सीखी। मुझे लगा कि निर्देशन करना चाहिए। मैंने अब तक सात नाटक निर्देशित किए हैं जो छोटे बच्चों के साथ हैं। जमशेदपुर, टाटानगर, नागपुर, पुणे, भिलाई, कोलकाता, भोपाल और इंदौर की नामचीन नाट्य संस्थाओं में वरिष्ठों के निर्देशन में अभिनय किया है।