उधर, एनएमसी ने कॉलेज भवन, गल्र्स-ब्वॉज हॉस्टल, फैकल्टी के लिए क्वार्टर, नर्सिंग क्र्वाटर समेत अन्य कमियां पाई हैं। इसे लेकर स्वास्थ्य विभाग के प्रमुख सचिव डॉ. आलोक शुक्ला ने चिकित्सा शिक्षा संचालक डॉ. विष्णु दत्त समेत, तीनों मेडिकल कॉलेजों के डीन से चर्चा की है। कमियां दूर करने के निर्देश दिए हैं।
3 साल में जमीन तक नहीं ढूंढ पाए
राज्य सरकार द्वारा कॉलेजों की स्थापना को लेकर जमकर लापरवाही बरती गई। केंद्र सरकार की 3 साल पहले आई स्कीम के तहत केंद्र सरकार हर कॉलेज के लिए 50-50 करोड़ की राशि (फस्र्ट फेज में) जारी कर चुकी है। अगली 3 किस्त तब जारी होंगी, जब पहली किस्त की यूटालाइजेशन सर्टिफिकेट सबमिट होगा। उधर, इन 3 सालों में कॉलेज के जमीन का अधिग्रहण, निर्माण कुछ भी नहीं हो पाया है। महासमुंद, कांकेर के लिए जो भवन अभी एनएमसी को दिखाए गए हैं, वे पर्याप्त नहीं हैं।
डॉक्टरों के तबादले, संविदा नियुक्ति ही विकल्प
मेडिकल कॉलेजों की मान्यता हासिल करने के लिए चिकित्सा शिक्षा विभाग को रायपुर, बिलासपुर, जगदलपुर मेडिकल कॉलेज से डॉक्टरों के तबादले करने होंगे। खासकर उन डॉक्टरों के जो पद के विरुद्ध सेवारत हैं। जो सालों से रायपुर में ही जमे हुए हैं। मगर, तबादलों से सभी रिक्त पद भर पाना संभव नहीं। संविदा नियुक्ति दूसरा विकल्प है। जिसके लिए राज्य से बाहर डॉक्टर इंटरव्यू करने की तैयारी भी है। तीसरा, विकल्प सीधी भर्ती है। जो संभव है मगर 3 हफ्ते में हो पाना संभव नहीं है।
फैकल्टी की कमी-
महासमुंद- 56 प्रतिशत
कांकेर- 92 प्रतिशत
एनएमसी की रिपोर्ट में फैकल्टी, स्टाफ और इंफ्रास्ट्रक्चर की कमी दर्शाई गई है। इन सभी को दूर करने की पूरी कोशिश की जा रही है। इस सत्र में अनुमति मिलनी चाहिए।
– डॉ. विष्णुदत्त, प्रभारी संचालक, संचालनालय चिकित्सा शिक्षा