अइसन हावे हमर महतारी......
पूछथे जब कोनो..सरी दुनिया मा सिरतोन मया मिलथे का कहूं? दाई.. हांस के कहूं देथव महूं।
सरी दुनिया के ठोकर.. पांव मा परथे जब फोरा।
सुरता आथे ओ दाई.. बड़ सुग्घर तोर मयारूक कोरा।1।
मयारूक कोरा महतारी के, अछरा सुग्घर जुड़ छांव।
सरी तीरथ के पुन परताप, सरग कस तोर पबरित पांव।२।
कहूं जावय जब मनखे संगी, सबके गोठ पतझर पाना
सुवारथ लुकाए बाई के मन, फेर दाई पूछय खाए हस खाना?
छत्तीसगढ़ी बोली में माँ के लिए ये पंक्तियाँ दीपक साहू ने भेजा है।
"दाई के अंचरा"
मोर दाई के अंचरा ,
जइसे पीपर छइयां!
सुत जाथों मैं हा,
पसार के पइयाँ!!
गुरतुर लागे बोली तोर
गारी घलो सुहाथे वो !
तोला देख के घर म दाई
सावन-भादो आथे वो!
लाली-गजरा कुछु नई जाने
मया ल बस तैं जाने वो!
लइका -पिचका सास -ससुर ल
इहि तिरिथ तैं माने वो!
पहिर के लुगरा लाली दाई
मांग सिंदूरी डारे वो!
दाई बने तैं हमर वो माता
धन-धन भाग हमारे वो!
पांव परौं मैं तोर वो मईया,
तैं ह अमर कहाये वो!
तोर सही नहीं कोनो दाई
अमरित धार बोहाये वो!
रायपुर की कवियत्री सुनंदा शर्मा ने यह भेजी है।
मोल नइ ओ मयारूक कोरा के, दुनिया के रेंगत मनखे अखमुंदा हे...
बर बाधा बइरी पीरा के आगु, कलजुगिहा मानुस शर्मिंदा हे।
कोनो कही नइ बिगाड़ सकय मोर, काबर कि मोर दाई अभी जिंदा हे।
जनम धरे हंव तोर कोरा मा, छत्तीसगढ़िया भोला-भाला अंव।
मिलिस तोर अछरा के छांव मोला , दाई मंय बड़ किस्मत वाला अंव।
धमतरी जिले के मगरलोड निवासी दीपक साहू ने अपनी माताजी को याद करते हुए ये कविता लिखा है।